~ 1 ~
तरक्की की वो दौड़
हर मायने खो देती है जनाब
जिसमें माँ - बाप का हाथ
उनके बच्चों से छूटता जाए
~ 2 ~
वक़्त ने सीखा और समझा दिया
बहुत सी भीड़ रही अपनों की
पर सारी ज़िन्दगी
अकेले ही चलते रहे
~ 3 ~
शहर में बड़ी चहल पहल है
लग रहा है खूब बिक रही हैं मेरी यादें
तूने उसकी बोली
बड़े सस्ते दामों में जो लगा दी
~ 4 ~
मैंने कहा चली जाओ
मेरी ज़िन्दगी से
पर वो कहाँ मानने वाली थी
तेरी यादें
तेरी तरह उनको भी
अड़े रहने की
पुरानी आदत जो ठहरी
~ 5 ~
मेरी खामोश यात्रा का वो मुसाफिर
बात कुछ भी नहीं हुई
पर पता नहीं क्यों
आज तक उसके किस्से
ख़त्म ही नहीं हो रहे
~ 6 ~
मेरे दुपट्टे के हर मकेश के साथ
धागे की जगह
तुम्हारी यादें टकी हुई हैं
कल मैं गइ थी
कारीगर के पास
मकेश निकलवाने
उसने कहा इन्हे उधेड़ने से
सब कुछ तार - तार हो जाएगा
सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteवाह, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय ।
Deleteमैंने कहा चली जाओ
ReplyDeleteमेरी ज़िन्दगी से
पर वो कहाँ मानने वाली थी
तेरी यादें
तेरी तरह उनको भी
अड़े रहने की
पुरानी आदत जो ठहरी
यादें न गतयी या जाने ना दिया
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने पर ।
ReplyDeleteगहन भाव आ0
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteमैंने कहा चली जाओ
ReplyDeleteमेरी ज़िन्दगी से
पर वो कहाँ मानने वाली थी
तेरी यादें
तेरी तरह उनको भी
अड़े रहने की
पुरानी आदत जो ठहरी..बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति । हम छोड़ने को तो बहुत कुछ छोड़ सकते हैं,पर ये जो यादों का पिटारा है,वो तो साथ ही चलता है ।
तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया,
Deleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति । आपका सृजन दिल के बहुत करीब लगा।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteएक-एक अशआर दिल में कहीं गहरे तक उतर गया। और आख़िरी मुक्तक का तो कहना ही क्या? तारीफ़ भी की जाए तो कितनी की जाए?
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय,
Deleteबहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय आपका
ReplyDeleteजीवन अनुभवों को बहुत मर्मस्पर्शी रूप में प्रस्तुत किया है आपने
ReplyDeleteजीवन के गुणा-भाग को कुछ तो बहुत बाद में लेकिन समझ तो जाते है, लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो ताउम्र दुनियादारी समझ ही नहीं पाते हैं
आपने ठीक कहा कविता जी। कई ऐसे भी होते हैं जो ताउम्र दुनियादारी नहीं समझ पाते। ऐसे लोगों के लिए ही यह शेर कहा गया है:
Deleteअब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मेरा, मैं बाज़ आया
कविता जी आपका तहेदिल से शुक्रिया ,
Deleteजितेंद्र जी आप का तहेदिल से शुक्रिया,
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया,
ReplyDeleteवाह! बड़ी गहराई तक पैठ जाने वाली अत्यंत प्रभावोत्पादक पंक्तियाँ!!! स्याही का रंग यूँ ही गढियाता रहे। शुभकामनाएं और बधाई!!!
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय.
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय.
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय.
ReplyDeleteबहुत सुंदर काव्य सृजन।हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteसार्थक लघु रचनाएं, हृदय तक उतरती, सुंदर सृजन।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय.
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ReplyDeleteखूबसूरत क्षणिकाएँ।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय.
Deleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteहर क्षणिका बहुत गहरी ...
ReplyDeleteजीवन के गूढ़ अनुभव जैसे शब्द बन कर उतर गए हों किसी कागज़ पर ...
अंतिम वाली तो सीधे दिल में जाती है ... सच है की यादों के मनके सब कुछ उधेड़ देंगे पर निकलेंगे नहीं ...
तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय,
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
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