ज़माने की रौनक में
ज़िन्दगी ढूंढने का मसला
रफ़्तार के बीच
कहीं पीछे छूट जाने का डर
पहचान को बरक़रार
रखने की जद्दोजहत
हुज़ूम के बीच की ज़िन्दगी
जहाँ तिल भर भी हिलने की
जगह न हो
कभी कभी भ्रम होता है
जीवन को सांसे
मिल भी रही है की नहीं
कोई खेल रहा है
तुम्हारे साथ
ताश की बाज़ी
कौन सा पत्ता अब
टेबल पर पड़ने वाला है
बढ़ता टेंशन का लेवल
मेरी आवाज़ मुझमें ही
खो सी गइ है कहीं
दुनिया के बाज़ार में
शब्द सब खर्च हो गए हैं
जीने के लिए अगले
दिन में ढकेल दिए
जाते हो
इतनी रफ़्तार में
दोस्त और दुश्मन
दोनों को समझ पाना
बड़ा मुश्किल है
प्यार और नफरत
सिक्के के दो पहलु
पर सिक्का अब
घूमता ही रहता है
बहुत तेज़ी से
जिससे की तुम
कुछ महसूस ही
नहीं कर पाओ
जब दूभर हो जाता है
इन सब के बीच जीना
तब अकेले निकल पड़ना
लॉन्ग ड्राइव के लिए
सन्नाटे की खोज में
जहाँ अपनी आवाज़
लौटकर खुद अपने
को सुनाई दे
इन अशआर के बीच बिखरे आपके अहसासात को महसूस कर सकता हूँ मैं। ये ज़माना ही ऐसा है कि जिसमें ऐसी लाचारी को सहना पड़ता है, अपनी ही आवाज़ कहीं खो गई सी लगती है जिसे ढूंढ़ना भी एक मशक़्क़त भरा काम लगता है। ये वक़्त, ये दुनिया, ये ज़माना शायद उन्हीं के लिए है जो जज़्बात से कोरे हैं। इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी साहब की लिखी हुई और चित्रा सिंह जी की गाई हुई एक मशहूर ग़ज़ल (इसमें कोई शिकवा ना शिकायत ना गिला है) का एक शेर है:
ReplyDeleteमुझको मेरी आवाज़ सुनाई नहीं देती
कैसा ये मेरे जिस्म में इक शोर मचा है
आदरणीय सर आपका तहेदिल से शुक्रिया ,
Deleteसमय की दुरुहताओ ने जीवन के जोखिम बढ़ा दिए हैं। बहुत गहनता से विवेचन प्रस्तुत किया है आपने जीवन का। बहुत बढ़िया लिखा आपनेलोहड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको मधुलिका जी 🙏🙏🌷🌷❤️❤️
ReplyDeleteप्रिय रेणु,तहेदिल से शुक्रिया आपका,आप को भी मकर संक्रांति और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ,स्नेह
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय सर आप का तहेदिल से शुक्रिया ,
Deleteकुछ महसूस ही
ReplyDeleteनहीं कर पाओ
जब दूभर हो जाता है
इन सब के बीच जीना
तब अकेले निकल पड़ना
लॉन्ग ड्राइव के लिए
सन्नाटे की खोज में
जहाँ अपनी आवाज़
लौटकर खुद अपने
को सुनाई दे
वाह! क्या खूब कहा!
अगर खुद से मिलना है तो सबसे दूर हो जाओ तभी खुद से मिल पाओगे!
काले घने अंधेरों में जब खुद को देख नहीं पाओगे
तब खुद को महसूस कर पाओगे!
प्रिय मनीषा स्नेह और बहुत सारी शुभकामनाएं.मेरी ब्लाग पर आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया.
Deleteनिराशा की पराकाष्ठा में आशा का जन्म होता है।
ReplyDeleteपरिस्थितियों से हारना नहीं हराना ही जीवन की सार्थकता है।
सादर।
प्रिय श्व़ेता जी मेरी ब्लाग पर आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया.
Deleteआदरणीय सर मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका,
ReplyDeleteमेरी आवाज़ मुझमें ही
ReplyDeleteखो सी गइ है कहीं
दुनिया के बाज़ार में
शब्द सब खर्च हो गए हैं
मर्मस्पर्शी सृजन ।
बहुत बहुत शुक्रिया मीना जी.
Deleteआशा और निशाशा मन की स्थितियां है जो बदलती रहती हैं ...
ReplyDeleteशायद यही जीवन है ... गहरी भाव संजोये हैं रचना में ...
आदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया मेरी ब्लाग पर आने के लिए 🙏
ReplyDeleteThank You so much sir
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