जाड़ों की सर्द रातें
कॉफी के मग
फायर प्लेस की लपटें
महंगे कंबलों की गर्माइश
कल के भविष्य की चिंता में
नींद की तरसती आँखों
का ख्वाब
काश एक नींद का
टुकड़ा मिल जाता
एक सर्द रात में
जीवन के दो बिखरे हुए हालात
पटरी पर सोती
पतले कम्बलों में
ठिठुरती ज़िन्दगी
बिछावन की जगह आज का अखबार
जिसकी हैडलाइन है,
"आज वर्ष का सबसे ठंडा दिन है"
आधे फटे कम्बल में
चिपटा हुआ
गली का आवारा कुत्ता
ठंडी और राख हो चुकी
खोखे वाली लकड़ी की आग
दिन भर की मज़दूरी के बीच
नींद बहुत गहरी है
आज में जीता
आज पेट भरा है
कल मेरा वजूद
ज़िंदा है या मरा
किसी को शायद
फर्क नहीं पड़ेगा
पर नींद के ख्यालों में
एक ख्वाब है कहीं
काश एक और
कम्बल का टुकड़ा मिल जाता
ये जाड़े की रातें
बड़ी अजीब हैं ये
किस्मत की बातें
मर्म को स्पर्श कर गई यह अभिव्यक्ति - एक सच्चाई जो आँखें मूंद लेने से बदल नहीं सकती।
ReplyDeleteआदरणीय सर बहुत बहुत आभार आपका,
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-2-22) को पाश्चात्य प्रेमदिवस का रंग" (चर्चा अंक 4342)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
आदरणीया आपका तहेदिल से शुक्रिया मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने पर ।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 15 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने पर
Delete
ReplyDeleteजिसको मिलता है उसको कद्र नहीं, नींद नहीं और जिसके पास नहीं वह तरसता है छोटी-छोटी ख्वाइशें के लिए। बड़ी विडंबना है।
मर्मस्पर्शी रचना
आदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteमार्मिक रचना, क़िस्मत की ही बात कही जाएगी, कहीं तो पालतू पशुओं के लिए भी आरामदायक बिस्तर हाज़िर हैं और कहीं इंसान खुले में सोने पर मजबूर हैं
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteनींद की तरसती आँखों
का ख्वाब
काश एक नींद का
टुकड़ा मिल जाता
एक सर्द रात में... वाह!👌
आदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteबहुत ही गहरे दर्द को व्यक्त करती अत्यंत मार्मिक वह ह्रदय स्पर्शी रचना!
ReplyDeleteकितना अजीब है
किसी की आंखों में नींद है पर सोने के लिए बिस्तर नहीं और किसी के सोने के लिए बिस्तर है पर आंखों में नींद नहीं!
प्रिय मनीषा तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteऐसी विडंबना के लिए क्या कहा जाए? मार्मिक सृजन।
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका,।
Deleteयथार्थ को कहती मर्मस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना ।
कुछ कुछ ऐसा ही मैंने भी कभी लिखा था । अब ढूँढना पड़ेगा । मिल गया तो लिंक भेजूंगी ।
आदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका.आप जरूर लिंक भेजिएगा, इन पंक्तियों का खयाल तब आया जब मैं बेटी को रेलवे स्टेशन छोडने गयी थी,वहीं मजदूरों को ठंड में सोते देखा और मेरी कविता को शब्द मिल गए...
Deleteमर्म को छू के गुज़रती है रचना ...
ReplyDeleteमार्मिक ...
आदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका🙏
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteआदरणीय सर बहुत बहुत आभार.
Deleteयथार्थ का सटीक मार्मिक चित्रण ।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आदरणीया
Deleteबहुत अच्छी कविता।हार्दिक शुभकामनाएं।सादर अभिवादन
ReplyDeleteआदरणीय सर बहुत बहुत आभार आपका
ReplyDeleteसमकालीन परिद्रश्य पर लिखी
ReplyDeleteयथार्थवादी रचना
बधाई
आदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
ReplyDeleteसमाज की विषमताओं को इंगित कर हृदय को द्रवित करती मर्मस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीया ,
Deleteदिल छु जाने वाला सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय सर,
Deleteखूबसूरत भावों से सजी सुन्दर कविता। अति सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय संजय जी
ReplyDeleteThank you so much sir
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