Sunday 30 August 2015

दर्द रिस्ता है मोम की चट्टानों से



दर्द रिस्ता है मोम की चट्टानों से 
सुन कर लोग फ़ेर लेते हैं चेहरे 
इन अफ़सानों से 
जो निरंतर चले जा रहे हैं
किस्मत की अंधेरी बंद गलियों  में 
उन्हें देख़ते हैं शरीफ़ लोग 
ख़िडकियाँ बंद कर मकानों से 
दर्द की दवाएँ लिख़ी हैं कुर्सी के विज्ञापन में 
ख़ूबसूरत वादे
टंगे हैं खजूर के पेड़ में 
चीथड़ों में लिपटी बेबस जिंदगियाँ
आशाओं से भरी आँख़ें, ख़ामोश चेहरे 
भीड़ है वृक्ष के नीचे,अमृत की तलाश में 
अंधेरी है इनकी सुबह उदास है शाम 
और हम जो अपने से ही हैं बेख़बर 
हमारी तरफ़ ही है उनकी नज़र 
शीशे में तैरता अट्टहास 
या दर्द में ख़िलती मुस्कान
हमें न जाने कब होगी उनकी पहचान
अब और नहीं बहलेगा उनका मन 
ख़ालि पेट और सूनी आंख़ो में 
दिख़ते हैं मख़मलि सपनें
एक फटा हुआ बिछौना
मुट्ठी भर चावल के दानें 
धूप और बारिश से बचाता एक टूटा आशियाना 
बुझता हुआ सा एक चिराग़
जीवन बीत रहा लड़ता हुआ 
अज्ञान के वीरानों से 
दर्द रिस्ता है
मोम की चट्टानें से

25 comments:

  1. बहुत गहरे दर्द का एहसास कराती है रचना ... जिंदगी ऐसे लम्हे कभी न लाये ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आप का दिगम्बर जी ।

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  2. जीवन बीत रहा लड़ता हुआ
    अज्ञान के वीरानों से
    दर्द रिसता है
    मोम के चट्टानों।
    मार्मिक रचना।

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  3. जीवन बीत रहा लड़ता हुआ
    अज्ञान के वीरानों से
    दर्द रिसता है
    मोम के चट्टानों।
    मार्मिक रचना।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आप का राजेश कुमार जी ।

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  4. बहुत सुंदर रचना.गहरे भाव.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आप का राजीव कुमार जी ।

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  5. बहुत बहुत आभार आप का मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने का ।

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  6. एक एक शब्द अंतस को झकझोरता हुआ...दिल को छूते मार्मिक अहसास...बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

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  7. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कैलाश शर्मा जी.

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  8. गहरे दर्द का एहसास करा गई आपकी रचना ...मधुलिका जी

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  9. शुक्रिया आपका संजय जी.

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  10. बेहद भावपूर्णं रचना की प्रस्‍तुति। http://techachievementsnews.blogspot.com/2015/09/blog-post.html

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कहकशां जी.

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    2. सुन्दर, प्रभावी और दिल को छूती रचना

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  11. बहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी.

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  12. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 2 जून 2016 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

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  13. संवेदनशील मन को सबका सबका दुःख-दर्द अपना लगता है । जब तक संवेदनशील हैं इंसान तब तक वह सबके दर्द को समझता है और जब इसका अभाव हो जाता है तो फिर उसे इंसान कहलाना कठिन। . .
    बहुत सुन्दर रचना। . .

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  14. दर्द रिसता ही है। कलम की स्याही बनकर भी। बहुत ही संवेदनशील मार्मिक रचना। गहरे में उतर गई।

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  15. दर्द रिसता ही है। कलम की स्याही बनकर भी। बहुत ही संवेदनशील मार्मिक रचना। गहरे में उतर गई।

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  16. एक अलग तरह का विश्लेषण , दर्द का , अच्छी कविता बधाई

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