गांवों में अब भी कागा मुंडेर पर नज़र आते हैं
उनके कांव - कांव से पहुने घर आते हैं
पाँए लागू के शब्दों से होता है अभिनंदन
आते ही मिल जाता है
कुएँ का ठंडा पानी और गुड़ धानी
नहीं कोइ सवाल क्यों आए कब जाना है
नदी किनारे गले मे बाहें डाले
कच्चे आम और बेरी के चटकारे
और वो सावन के झूले
आंसू से नयन हो जाते गीले
वो रात चाँदनी, मूंज की खाट
बाजरे की रोटी चटनी के साथ
बीते बचपन की गप्प लगाते
दिल करता कभी न लौटे शहर
जहाँ जिंदगी बन गई तपती दोपहर
जहाँ नहीं है उचित
जाना हो बिना सूचित
अच्छा खाना है पर रिश्तों में स्वाद नहीं
महंगी जरूर है वहाँ की शामे
पर तारों वला आसमान नहीं खरीद पाते
प्यार से गले में बाहँ डाल फरमाते
हाँ तुम्हें जाना कब है रिज़र्वेशन तो होगा
नज़रें चुरा के कह जाते की
वक्त पता नहीं कहाँ गुम है
वो मूंज की ख़ाट और गहरी नींद
नर्म बिछोने पर करवट बदलते रात भर
बड़े घर में छोटा सा दिल
और वहाँ छोटी सी झोपड़ी में दो ख़ुली बाहें
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका औंकार जी ।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण। जमींन से जुड़ी पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण। जमींन से जुड़ी पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण। जमींन से जुड़ी पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को पढ़ने और सराहने के लिए बहुत.
Deleteअपनी माटी की बात, अपने गाँव की बात...बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका हिमकर जी.
Deleteगावों की मिठास शहरों में मिलना नामुमकिन ही है. शहरों में तो बनाबटीपन के सिवा कुछ नहीं.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
बहुत बहुत आभार आपका रचना जी.
Deleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति,,,जाने कहाँ गए वो दिन....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कैलाश शर्मा जी
ReplyDeleteशहरी दौड़धूप से हाल बेहाल दिल को गाँव की याद सुकून पहुँचाता है.
ReplyDelete.... गांव की याद दिलाती बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार आपका कविता जी.
Deleteअपनी माटी ... अपना आँगन ... वो बातें, वो यादें ... ये सब कहाँ शहर की चकाचौंध में ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का दिगम्बर जी । मुझ नाचीज की रचनाओ के लिए वक्त निकालनेके लिए ।
Deleteआपकी कविता के शब्द-शब्द इतने अभिव्यक्त हैं कि कविता का भाव-सम्प्रेषण द्विगुणित हो गया है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संजय जी । एक प्रोत्साहन ही है जो कलम में जोश भर देता है ।
Deleteबहुत सुंदर और जमीन से जुड़ी पंक्तियाँ हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर और जमीन से जुड़ी पंक्तियाँ हैं
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका मालती मिश्रा जी.
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