किसी की याद में अश्क बहाना है मना
आज कोइ नज्म नई बना
उस गली और मोड़ के शब्दों को ले
जहॉं तू कभी खड़ा था अकेले
तब भी तो तू सुकून से जीता था
आज फ़िर उन पुरानी राहों को नाप आ
जिनकी वीरानगी पर तू चलकर होता था ख़फ़ा
गम दे कर भूल जाना जिसकी फ़ितरत थी
तूने क्यों उसकी यादों को
सीने से लगाने की जरूरत की
पुरानी यादों को रेज़ा-रेज़ा हो जाने दे
बेइन्तेहा बेकस हो कर डूब मत
परेशांहाली में मयख़ाने के अंदर
पैमाने मत तौल
बाहर आ और ख़ुली फ़िजा में सांस ले
चार कदम आगे बढ़ और ज़िदंगी को थाम ले
आज मेरी कलम ने किया है मना
किसी की याद में अश्क बहाना है मना
मन बोझिल हो तो कलम उँगलियों में धंस के रह जाती हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत बहुत आभार आपका कविता जी.
ReplyDeleteयादों के गलियारे से निकलकर यथार्थ की रह पकड़ लेना ही जीवन पथ है। वेदना को सृजन का आकार देना ही जीवन है।कविता बहुत कुछ कहती है। मर्मस्पर्शी।
ReplyDeleteयादों के गलियारे से निकलकर यथार्थ की रह पकड़ लेना ही जीवन पथ है। वेदना को सृजन का आकार देना ही जीवन है।कविता बहुत कुछ कहती है। मर्मस्पर्शी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को पढने और सराहने का ।
Deleteकलम यादें समेटने नहीं देती ... पर अश्क तो निकल ही आते हैं अपने आप ...
ReplyDeleteगहरी रचना ...
बहुत बहुत आभार आपका दिगम्बर जी ।
Deleteबेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना..
ReplyDeleteवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
शुक्रिया आपका संजय जी ।
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