मुझे लगा एक परी छुपी हुइ थी
जैसे बादलों की ओट में
तुम्हारी शरारतें वो चंचलता
तुम्हारा बचपन अभी बीता भी न था
और भाग्य दे गया बहुत सी चुभन
तुम में है अदभुत प्रतिभा
तुम हो सुंदरता की प्रतिमा
तुम्हारी ये सुइयों से दोस्ती
तुम हँस कर छिपा लेती हो
अपने आँखों के मोती
तुम्हारी उम्र के सुनहरे ख्वाब
और आगे बढ़ने का जज़्बा
तुम्हारा साहस और हिम्मत संग
रोज़ डायबिटीज़ से लड़ने की जंग
तुम्हारा युवा मन बहुत कुछ करना चाहता है
पर तुम्हारा भाग्य कुछ निणनय टालता भी है
हर रोज़ सुइयों की चुभन
और तुम्हारा कोमल तन
मेरे मन को एक एक सुइ से
गहरे भेदता जाता तुम्हारा तकलीफों वाला जीवन
तुम मेरा गम मुस्कुरा कर बाँटना चाहती हो
कहती हो माँ मेरे जैसे है लाखों बच्चे
पर क्या करूँ मैं एक माँ जो हूँ
मेरी बेटी १२ साल से टाइप वन डायबिटिक है...
साहसी बच्ची को शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteआपका बहुत शुक्रिया । वह डायबिटिक लोगों के लिए बहुत कुछ करना चाहती है । आप जैसे लोगों से ही उसे प्रोत्साहन मिलता है ।
Deleteब्लाग बुलेटिन पर मेरी रचना को स्थान देने का शुक्रिया ।
ReplyDeleteसाहसी बच्ची के लिये मंगलकामनायें ।
ReplyDeleteबेटी को प्रोत्साहित करने का बहुत बहुत शुक्रिया । आप किसी डायबिटिक को जानते हो तो उन तक ये ब्लॉग जरुर पहुचाये । आभार ।
Deleteमर्ज़ से डरे नहीं, लड़े. हौसला बीमारी से लड़ने की ताक़त देती है. मंगलकामनाएं.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका हिमकर जी ।
Deleteबच्ची को शुभ कामनाएँ
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ओमकार जी ।
Deleteबिटिया एक दिन अपनी हिम्मत और जज्बे से रोग की यह जंग जीत जायेगी ऐसा मुझे विश्वास है. हिम्मत रखिये जानती हूँ माँ सा दिल और दिल नहीं मिलता इस जहाँ में में।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कविता जी.
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