एक विशाल वृक्ष जिसकी जड़ें बहुत गहरी हों
जिसकी शाखाएँ बहुत लम्बी हों
जिससे मुझे एक ठहराव मिले
पर ईश्वर ने मुझे बनाया है
एक सुंदर और कोमल पौधा
जिसे हर कोइ अपनी मर्जी से रोपता है
वो जैसे-जैसे बड़ा होता है
वैसे -वैसे उसका स्थानांतरण होता है
मुझे रखने वाले पात्र की पहचान बदलती जाती है
कभी पिता,कभी पती,कभी बेटा
पौधा जगह बदलते, बदलते
कुम्हला जाता है
हर बार अपनी जड़ें जमाने
की कोशिश में और उखड़ जाता है
सभी को उम्मीदें हैं उससे
ढेर सारी छाँव की
फ़ल पत्तियाँ और छाल की
कोइ भी पौधे के मन के अंदर नहीं झाँकता
पौधा घुटन भरी चीख से चींख़ता है
मैं एक विशाल वृक्ष बनाना चाहता हूँ
कोमल पौधा नहीं
बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कैलाश शर्मा जी मेरी रचना को पढ़ने का.
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका शास्त्री जी मेरी रचना को पढ़ने और चर्चा मंच मे शामिल करने के लिए.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी
Deleteबहुत ही संवेदनशील ... मजबूर वृक्ष विशाल वृक्ष सब को संबल देता है पर अपने आप को बहुत दुःख ... मन से तो कोमल होता ही है ...
ReplyDeleteशुक्रिया आपका दिगम्बर जी मेरी रचना को पढने और सराहने का ।
ReplyDeleteतमाम कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करते-करते कोमल पौधा भी मजबूती से अपनी जड़ें जमा लेता हैं. क्योकि वह सब्र रखने का गुर जान जाता है..
ReplyDeleteशुक्रिया आप का कविता जी ।
Deleteसुन्दर और भावपूर्ण रचना.. पौधों से ही बनते हैं विशाल वृक्ष. वृक्ष करुणा, दया, ममता, दया, समरसता, सहिष्णुनता और उदारता का प्रतीक होते हैं
ReplyDeleteशुक्रिया आप का हिमकर जी ।
Deleteस्त्री मन की प्रभावी प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी.
ReplyDeletehar stri ki yahi kahani.....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका उपासना जी
Deleteभावपूर्ण
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका.
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