Thursday, 20 August 2015

विशाल वृक्ष


मैं बचपन से वृक्ष बनना चाहती थी 
एक विशाल वृक्ष जिसकी जड़ें बहुत गहरी हों 
जिसकी शाखाएँ बहुत लम्बी हों 
जिससे मुझे एक ठहराव मिले 
पर ईश्वर ने मुझे बनाया है
एक सुंदर और कोमल पौधा 
जिसे हर कोइ अपनी मर्जी से रोपता है 
वो जैसे-जैसे बड़ा होता है 
वैसे -वैसे उसका स्थानांतरण होता है 
मुझे रखने वाले पात्र की पहचान बदलती जाती है 
कभी पिता,कभी पती,कभी बेटा 
पौधा जगह बदलते, बदलते
कुम्हला जाता है 
हर बार अपनी जड़ें जमाने
की कोशिश में और उखड़ जाता है
सभी को उम्मीदें हैं उससे 
ढेर सारी छाँव की
फ़ल पत्तियाँ और छाल की 
कोइ भी पौधे के मन के अंदर नहीं झाँकता 
पौधा घुटन भरी चीख से चींख़ता है 
मैं एक विशाल वृक्ष बनाना चाहता हूँ 
कोमल पौधा नहीं

17 comments:

  1. बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कैलाश शर्मा जी मेरी रचना को पढ़ने का.

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया आपका शास्त्री जी मेरी रचना को पढ़ने और चर्चा मंच मे शामिल करने के लिए.

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  3. बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी

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  4. बहुत ही संवेदनशील ... मजबूर वृक्ष विशाल वृक्ष सब को संबल देता है पर अपने आप को बहुत दुःख ... मन से तो कोमल होता ही है ...

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  5. शुक्रिया आपका दिगम्बर जी मेरी रचना को पढने और सराहने का ।

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  6. तमाम कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करते-करते कोमल पौधा भी मजबूती से अपनी जड़ें जमा लेता हैं. क्योकि वह सब्र रखने का गुर जान जाता है..

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    1. शुक्रिया आप का कविता जी ।

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  7. सुन्दर और भावपूर्ण रचना.. पौधों से ही बनते हैं विशाल वृक्ष. वृक्ष करुणा, दया, ममता, दया, समरसता, सहिष्णुनता और उदारता का प्रतीक होते हैं

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    1. शुक्रिया आप का हिमकर जी ।

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  8. स्त्री मन की प्रभावी प्रस्तुति !

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  9. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका उपासना जी

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका.

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