सुन कर लोग फ़ेर लेते हैं चेहरे
इन अफ़सानों से
जो निरंतर चले जा रहे हैं
किस्मत की अंधेरी बंद गलियों में
उन्हें देख़ते हैं शरीफ़ लोग
ख़िडकियाँ बंद कर मकानों से
दर्द की दवाएँ लिख़ी हैं कुर्सी के विज्ञापन में
ख़ूबसूरत वादे
टंगे हैं खजूर के पेड़ में
चीथड़ों में लिपटी बेबस जिंदगियाँ
आशाओं से भरी आँख़ें, ख़ामोश चेहरे
भीड़ है वृक्ष के नीचे,अमृत की तलाश में
अंधेरी है इनकी सुबह उदास है शाम
और हम जो अपने से ही हैं बेख़बर
हमारी तरफ़ ही है उनकी नज़र
शीशे में तैरता अट्टहास
या दर्द में ख़िलती मुस्कान
हमें न जाने कब होगी उनकी पहचान
अब और नहीं बहलेगा उनका मन
ख़ालि पेट और सूनी आंख़ो में
दिख़ते हैं मख़मलि सपनें
एक फटा हुआ बिछौना
मुट्ठी भर चावल के दानें
धूप और बारिश से बचाता एक टूटा आशियाना
बुझता हुआ सा एक चिराग़
जीवन बीत रहा लड़ता हुआ
अज्ञान के वीरानों से
दर्द रिस्ता है
मोम की चट्टानें से
बहुत गहरे दर्द का एहसास कराती है रचना ... जिंदगी ऐसे लम्हे कभी न लाये ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का दिगम्बर जी ।
Deleteजीवन बीत रहा लड़ता हुआ
ReplyDeleteअज्ञान के वीरानों से
दर्द रिसता है
मोम के चट्टानों।
मार्मिक रचना।
जीवन बीत रहा लड़ता हुआ
ReplyDeleteअज्ञान के वीरानों से
दर्द रिसता है
मोम के चट्टानों।
मार्मिक रचना।
बहुत बहुत शुक्रिया आप का राजेश कुमार जी ।
Deleteबहुत सुंदर रचना.गहरे भाव.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का राजीव कुमार जी ।
Deleteबहुत बहुत आभार आप का मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने का ।
ReplyDeleteएक एक शब्द अंतस को झकझोरता हुआ...दिल को छूते मार्मिक अहसास...बहुत मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कैलाश शर्मा जी.
ReplyDeleteगहरे दर्द का एहसास करा गई आपकी रचना ...मधुलिका जी
ReplyDeleteशुक्रिया आपका संजय जी.
ReplyDeleteबेहद भावपूर्णं रचना की प्रस्तुति। http://techachievementsnews.blogspot.com/2015/09/blog-post.html
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कहकशां जी.
Deleteसुन्दर, प्रभावी और दिल को छूती रचना
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 2 जून 2016 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
bahut bahut shukriya
Deleteसंवेदनशील मन को सबका सबका दुःख-दर्द अपना लगता है । जब तक संवेदनशील हैं इंसान तब तक वह सबके दर्द को समझता है और जब इसका अभाव हो जाता है तो फिर उसे इंसान कहलाना कठिन। . .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना। . .
bahut bahut shukriya
Deleteदर्द रिसता ही है। कलम की स्याही बनकर भी। बहुत ही संवेदनशील मार्मिक रचना। गहरे में उतर गई।
ReplyDeleteदर्द रिसता ही है। कलम की स्याही बनकर भी। बहुत ही संवेदनशील मार्मिक रचना। गहरे में उतर गई।
ReplyDeletebahut bahut shukriya
Deleteएक अलग तरह का विश्लेषण , दर्द का , अच्छी कविता बधाई
ReplyDeletebahut bahut shukriya
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