कहीं छोड़ आइ थी
पर वो दबे पाँव वापस लौट आइं थी
उसने मुझे बहाना ये बताया
की मेरे ज़हन से अच्छा आशियाना न पाया
कलाइ पर जो लिखा था तेरा नाम
उस पर जब पड़ती है किसी की प्रश्न भरीं नज़र
लोगो को बातें बनाने के लिए मिलती होगी नई ख़बर
पत्थर से घिसने पर भी नहीं छूटता वो लहू में मिला रंग
तू ने पल-पल मरने की सजा दे दी
उस पर किसी फ़कीर ने मुझे
लम्बी हो जिंदगी ये दुआ दे दी
सब कुछ छोड़ कर तूने लम्बे सफ़र की तैयारी कर ली
और मुझे आँसुओं को न आने की ताकीद कर दी
अब तो हर लम्हा तेरी याद साथ है
शायद वो हाथ की लकीर बन गई है
ज़िंदगी जो क़बूल नही हुइ
वो दुआ बना गई है
भावपूर्ण और अनुभूतियों से सराबोर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteभावपूर्ण और अनुभूतियों से सराबोर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को पढने और सराहने के लिए । आप की टिप्पणी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है ।
Deleteपत्थर से घिसने पर भी नहीं छूटता वो लहू में मिला रंग ....मन में उतरने वाली पंक्तियां।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका रश्मि जी ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने का ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : दिन कितने हैं बीत गए
बहुत बहुत शुक्रिया आपका राजीव कुमार जी.
Deleteअपने जो दिल में घर कर चुके होते हैं उनका साथ जिंदगी भर का होता है
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी.
Deleteख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी.
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी.
Deleteयादों की छोड़ आना आसान कहाँ ... लौट आती हैं हमेशा ... साँसों से रिशत हो जाता है उनका ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका दिगम्बर जी. आप जैसे बड़े लेखक की प्रेरणा जब मिलती तब मुझे लगता है कि मेरी कविता ने एक कदम और चलना सीख लिया है.
Deleteदिल को छूते गहन अहसास...बहुत ख़ूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कैलाश शर्मा जी.
ReplyDeleteआपको सपरिवार श्री गणेश जन्मोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाएं!
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति और सुंदर भावों सजी हुई रचना। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है। http://www.kanafusi.com
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका जमशेद आज़मी जी.
Deleteमधूलिका जी ! आपने इतना अच्छा लिखा है पर आश्चर्य है आपने मेरे मन के भाव कैसे पढ लिए , हम तो पहली बार ब्लॉग के माध्यम से ही मिल रहे हैं न !
ReplyDeleteप्रशंसनीय - प्रस्तुति । भाव - प्रवण - अभिव्यक्ति । बधाई ।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका शकुंतला जी.
Deleteयादों के आँगन में बैठकर हम अपनी ही यादों की जड़ों में पानी सींचते रहतें हैं ---
ReplyDeleteमन को छूती भावपूर्ण रचना ---
बधाई ----
आग्रह है-- मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों ---
http://jyoti-khare.blogspot.in/2015/09/blog-post_23.html
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति खरे जी
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