ख़ुल कर जीते हैं
आख़िरि सांस तक
निस्वार्थ भाव से सिख़ाते हैं
अपने बच्चो को उड़ना
ख़ुल जाते हैं जब बच्चो के पंख़
नहीं उम्मीद करते की
ये मुड़कर लौटेगा भी की नहीं
आने वाला कल
घोंसला ख़ाली होगा की भरा
कैसे रह पाते होंगें
उनके अपने जब दूर चले जाते होंगें
उनके आँसू उनका दिल उनका इतंज़ार
क्या वो घोंसले से निकाल फ़ेकते हैं
और उड़ जाते हैं सब कुछ झटक कर
कहीं बहुत दूर बिना यादों के
परिंदे सचमुच निस्वार्थ होते है।अति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका राजेश कुमार जी.
Deleteपरिंदे सचमुच निस्वार्थ होते है।अति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका राजेश कुमार जी.
Deletebahut sundar likha aapne...waah..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका उपासना जी.
Deleteस्वार्थ ही हम इंसानों को बांधे रखता है जीवन भर ....और हम सुख दुःख से बाहर नहीं निकल पाते है ..हम अपेक्षा करते हैं जबकि पशु पंछी अपेक्षाओं से मुक्त रहते हैं तभी वे सुख-दुःख से ऊपर उठकर स्वछन्द जीवन जीते हैं ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
बहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी.
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी.
Deleteजीवन के सत्य को व्यक्त करती हुई पंक्तियाँ अति सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका मालती जी.
Deleteबहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : तलाश आम आदमी की
बहुत बहुत शुक्रिया आपका राजीव कुमार जी.
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी.
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी.
ReplyDeleteजी शुक्रिया आप का ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आज आपको पढ़कर। मन नहीं कर रहा हटने को। बार-बार पढऩे को जी कर रहा है।
ReplyDeleteमेरी रचनाओ को पढने और तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
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