Wednesday, 30 September 2015

परिंदे


परिंदे नहीं होते स्वार्थी
ख़ुल कर जीते हैं
आख़िरि सांस तक 
निस्वार्थ भाव से सिख़ाते हैं
अपने बच्चो को उड़ना
ख़ुल जाते हैं जब बच्चो के पंख़ 
नहीं उम्मीद करते की
ये मुड़कर लौटेगा भी की नहीं 
आने वाला कल 
घोंसला ख़ाली होगा की भरा 
कैसे रह पाते होंगें 
उनके अपने जब दूर चले जाते होंगें
उनके आँसू उनका दिल उनका इतंज़ार
क्या वो घोंसले से निकाल फ़ेकते हैं
और उड़ जाते हैं सब कुछ झटक कर
कहीं बहुत दूर बिना यादों के

19 comments:

  1. परिंदे सचमुच निस्वार्थ होते है।अति सुन्दर रचना।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका राजेश कुमार जी.

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  2. परिंदे सचमुच निस्वार्थ होते है।अति सुन्दर रचना।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका राजेश कुमार जी.

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  3. bahut sundar likha aapne...waah..

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका उपासना जी.

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  4. स्वार्थ ही हम इंसानों को बांधे रखता है जीवन भर ....और हम सुख दुःख से बाहर नहीं निकल पाते है ..हम अपेक्षा करते हैं जबकि पशु पंछी अपेक्षाओं से मुक्त रहते हैं तभी वे सुख-दुःख से ऊपर उठकर स्वछन्द जीवन जीते हैं ..
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी.

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    2. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी.

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  5. जीवन के सत्य को व्यक्त करती हुई पंक्तियाँ अति सुंदर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका मालती जी.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका राजीव कुमार जी.

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी.

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  8. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ओंकार जी.

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  9. जी शुक्रिया आप का ।

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  10. बहुत अच्छा लगा आज आपको पढ़कर। मन नहीं कर रहा हटने को। बार-बार पढऩे को जी कर रहा है।

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    1. मेरी रचनाओ को पढने और तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

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