Saturday, 11 July 2015

मै कौन हूँ ?


मै कौन हूँ और क्या हूँ
क्या तुम मुझे हो जानते
बस चंद है मेरी ज़रूरतें 
किताब की दुकान देख रुक जाती हूँ 
अच्छे और सुंदर सफे लिए बिना रह नहीं पाती हूँ
सुंदर कलम तलाशती आँखें
सांसारिक रंग ढ़ंग कुछ नहीं आता 
बस कुछ लिख़ने के लिए एकांत मुझे है भाता 
सुकून मिलते ही 
मृगमरिचिका ख़ींचती है मुझे 
पानी की तलाश की तरह विषय ढ़ूँढती आँखें
सफेद वस्त्रों पर
काले मुखौटों पर 
इंसान के अंदर का जानवर या जानवर में छुपा इंसान
देश विदेश और समाज
वो मधुशाला और टूटते प्याले
नायिका का विरह 
नायक की मौत
आँसुओं का सैलाब 
वो बेवफ़ाइ का आलम 
क्या कुछ नही देखता अपनी अंदर की आख़ों से 
बेहतर सृजन की कोशिश में बीतता दिन 
अजनबी रुक जाओ
कैसी लगी मेरी रचना इतना बताते जाओ
मै तुम्हें नहीं जानती पर 
हमारी रचनाओं की आपस में गहरी दोस्ती है

10 comments:

  1. राक्स्ह्नाओं में अपना परिचय और रचना का मर्म जान्ने का प्रयास ... यह भी तो रचना ही है लाजवाब ...

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    1. बहुत बहुत बहुत शुक्रिया आपका दिगम्बर सर जी मेरी रचना पढने और सराहने के लिए..

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  2. कलम का हुनर किसी से कम नहीं.... जब चली तो पहचान बन जाती हैं ...
    बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी प्रोत्साहन के लिए |.

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  3. बहुत खूबसूरत दिल को छू जाने वाली रचना .
    कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जिनकी प्रशंसा के लिये शब्द भी कम पड़ जाते हैं

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सीमा मेरी रचना पढने और सराहने के लिए..

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  4. कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जिनकी प्रशंसा के लिये शब्द भी कम पड़ जाते हैं सीमा सक्सेना जी से सहमत हूँ ...उनमे से मधुलिका जी की रचनाये है !

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  5. बहुत बहुत शुक्रिया आपका संजय जी मेरी रचना को पढ़ने और सराहने के लिए

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  6. मंगलकामनाएं आपको !

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका सतीश सक्सेना जी.

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