क्या तुम मुझे हो जानते
बस चंद है मेरी ज़रूरतें
किताब की दुकान देख रुक जाती हूँ
अच्छे और सुंदर सफे लिए बिना रह नहीं पाती हूँ
सुंदर कलम तलाशती आँखें
सांसारिक रंग ढ़ंग कुछ नहीं आता
बस कुछ लिख़ने के लिए एकांत मुझे है भाता
सुकून मिलते ही
मृगमरिचिका ख़ींचती है मुझे
पानी की तलाश की तरह विषय ढ़ूँढती आँखें
सफेद वस्त्रों पर
काले मुखौटों पर
इंसान के अंदर का जानवर या जानवर में छुपा इंसान
देश विदेश और समाज
वो मधुशाला और टूटते प्याले
नायिका का विरह
नायक की मौत
आँसुओं का सैलाब
वो बेवफ़ाइ का आलम
क्या कुछ नही देखता अपनी अंदर की आख़ों से
बेहतर सृजन की कोशिश में बीतता दिन
अजनबी रुक जाओ
कैसी लगी मेरी रचना इतना बताते जाओ
मै तुम्हें नहीं जानती पर
हमारी रचनाओं की आपस में गहरी दोस्ती है
राक्स्ह्नाओं में अपना परिचय और रचना का मर्म जान्ने का प्रयास ... यह भी तो रचना ही है लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत शुक्रिया आपका दिगम्बर सर जी मेरी रचना पढने और सराहने के लिए..
Deleteकलम का हुनर किसी से कम नहीं.... जब चली तो पहचान बन जाती हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी प्रोत्साहन के लिए |.
Deleteबहुत खूबसूरत दिल को छू जाने वाली रचना .
ReplyDeleteकुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जिनकी प्रशंसा के लिये शब्द भी कम पड़ जाते हैं
बहुत बहुत शुक्रिया सीमा मेरी रचना पढने और सराहने के लिए..
Deleteकुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जिनकी प्रशंसा के लिये शब्द भी कम पड़ जाते हैं सीमा सक्सेना जी से सहमत हूँ ...उनमे से मधुलिका जी की रचनाये है !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका संजय जी मेरी रचना को पढ़ने और सराहने के लिए
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका सतीश सक्सेना जी.
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