बातें बहुत कही और सुनी हमनें
पर मुलाकात अब भी अधूरी है
मंजिल तक जाना मजबूरी थी
पर सफ़र अब भी अधूरा है
अधूरी तस्वीर पूरी करदो
रेत पर बनी है तस्वीर
इसे पानी के रंग से भर दो
मुलाकात अब पूरी कर दो
कहानी जो अधूरी थी
उसे मुझे सुनने वाले
शब्दों से भर दो
उस मजिल तक
तुम साथ जाना चाहते थे
अब आ भी जाओ
तुम्हारे इंतज़ार में
सफर के बीच में
जहाँ रुकी थी मैं
उस खाली स्थान को भर दो
इस आत्मा को
शरीर के बंधन से मुक्त कर दो
रेत की तस्वीर थी
पानी का रगं था
लहरें उसे अपने साथ वापिस ले गई
ढूंढ़ती रही आँखें पुराने निशान
तस्वीर, मुलाकात, मंज़िल
कुछ नहीं था दूर तक बस एक खामोशी
लहरों की हल चल और पक्षियों का कलरव |
सच मानो तो अंत यही है ... कुछ नहीं रह जाता रेत के निशाँ ज्यादा नहीं ठहर पाते ... पर जिंदगी की तस्वीर पे सब रंग भरे हों तो आसान हो जाता है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका दिगम्बर जी
Deleteसुंदर भावाभिव्यक्ति....कुछ भी शेष नही बचता, आहिस्ता-आहिस्ता रेत में मिल जाती हैं रेत पर बनी निशानियाँ साथ में सारी उम्मीदें भी...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर जी
ReplyDelete