Friday, 26 June 2015

एक पिता


पिता शब्द का अहसास 
याद दिलाता है हमें
की कोइ बरगद है हमारे आस -पास
जिसकी शीतल छाया में
हम बेफ़िक्र हो कर सो सकें
जीवन में गर आए कोइ दुख 
तो उन विशाल कंधों पर
सर रख कर
जी भर कर रो सकें
वो ऐसा मार्गदर्शक है 
जो पहले खुद उन रास्तों पर
चल कर अंदाज़ा लगाता है
की अगर जिंदगी में हम गिरे तो
क्या वो खाइ हमारा
आत्मविश्वास बचा पाएगी ?

दूरदर्शिता इतनी गहरी
क्या अच्छा अौर क्या बुरा 
वो हमारे जीवन का
एक दोस्त भी और एक प्रहरी
स्वप्न हम देखते आगे बढ़ने के
वो अपने छालो वाले हाथों से
गति देता हमारे पँजों को
जो उसने अपनी उम्र में संजोए थे ख्वाब
उनमें वो पंख लगाता है
हमारे लिए बेहिसाब
उसकी नींदे ख़ाली होती सपनो से
क्योंकि ?
कंधो पर ढेरों ज़िम्मेदारी 
सुला देती है नींद  गहरी और भारी

16 comments:

  1. बेहद सुन्दर कविता।

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  2. बहुत बहुत आभार आपका राजेश कुमार जी

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-06-2015) को "यूं ही चलती रहे कहानी..." (चर्चा अंक-2020) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शास्त्री जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए..

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  4. बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नीरज जी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुशील कुमार जी

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  6. बहुत सुन्दर कविता !
    वो पिता ही है जो खुद दिन भर तपती दोपहरी में खेत काम करके अपने बेटे की पढ़ाई और बिटिया की शादी के लिए पैसो का इंतज़ाम करता है !

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    1. जी हां सही फरमाया आपने यही है एक पिता की परिभाषा.. बहुत बहुत आभार आपका मनोजकुमार जी

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  7. चुपचाप सब कुछ सहते हुए भी मजबूत स्तम्भ हैं पिता ...

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    1. जी हाँ एक पिता का वजूद बहुत मायने रखता है घर में.. बहुत बहुत आभार आपका दिगम्बर जी

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  8. बहुत सुन्दर ,पिता के लिए जो भी कहें वो कम ही है

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    1. जी हां भारती जी शब्द कम पड़ जाते हैं लिखने के लिए.. बहुत बहुत आभार आपका मेरी कविता पढने और सराहने के लिए.

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  9. मजबूत स्तम्भ हैं पिता उम्दा रचना... बधाई.

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  10. बहुत बहुत आभार आप का संजय जी मेरी रचना पढ़ने और सराहने के लिए |

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