Friday 21 July 2017

ज़िन्दगी धूप की तरह ढलती


वह छत के कोने में 
धूप का टुकड़ा 
बहुत देर ठहरता है 
उसे पता है
अब मुझे काफी देर 
यहीं वक़्त गुज़ारना है 
क्योंकि वह शाम की 
ढलती धूप जो होती है 
उम्र के उस पड़ाव की तरह 
और मन डर कर 
ठहर जाता है 
ठंडी धूप की तरह
जब अपने स्वयं के लिए 
वक़्त ही वक़्त है
अब घोंसले में अकेले 
पक्षी की तरह 
अब सब उड़ना सीख गए
आँखों में जो अकेलापन बस गया है 
उसे कहीं तोह छिपाना है 
कहाँ - कहाँ 
चश्मे के पीछे 
अखबार के पन्नों में 
पार्क की किसी खाली बेंच 
या 
छत का कोना 
क्योंकि वो ढलती धूप 
मेरे बहाने जानती है 
इसलिए रुकी रहती है 
काफी वक़्त तक 
मेरे लिए 
क्योंकि अब 
मुझे काफी देर 
यहीं वक़्त गुज़ारना है | 

37 comments:

  1. वाह ! क्या बात है ! बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

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    1. तहे दिल से शुक्रिया राजेश जी ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-07-2017) को "शंखनाद करो कृष्ण" (चर्चा अंक 2675) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया शास्त्री सर जी ।

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  3. बहुत खूबसूरत कविता मधुलिका जी ... अकेलेपन को चीरती...

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  4. सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  5. कम से कम धुप ही साथ निबाह देती है ...सुन्दर अभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया संगीता जी ।

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  6. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " स्व॰ कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल जी की ५ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. तहेदिल से शुक्रिया मेरी रचना को स्थान देने पर ।

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  7. भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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    1. बहुत बहुत अभार आपका ।

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  8. कोमल मनोभाव की सुंदर अभिवयक्ति..

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया ।

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  9. दिल को छूती सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया ।

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  10. बहुत ख़ूब ... धूप प्रतीक है चाहत की और देर तक वी तभी ठहरती है ... इंतज़ार को चेतन रखती ...
    नाज़ुक एहसास की अभिव्यक्ति है ...

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    1. दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  11. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

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  12. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 26 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. तहेदिल से अभार आपका मेरी रचना को स्थान देने पर ।

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  13. सुन्दर प्रतीकों ,बिम्बों से सजी रचना। सन्देश की व्यापकता और रचना मर्म बार-बार वाचन के लिए आकर्षित करता है। बधाई।

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    1. तहेदिल से अभार आप का मेरी रचना को पसंद करने पर ।

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  14. एकाकी होती जीवन की साँझ का सहारा है सूरज
    कोई तो है साथ ....इसी से मन को संतुष्ट करना पड़ता है
    बहुत सुन्दर मनोद्गार ,,,

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    2. तहे दिल से शुक्रिया कविता जी ।

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  15. सुंदर प्रस्तुति |

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका।

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  16. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।

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  17. खूबसूरत, शांत, सहज भावों से सजी रचना !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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    2. बहुत बहुत आभार आपका ।

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    3. बहुत बहुत आभार आपका ।

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