वह छत के कोने में
धूप का टुकड़ा
बहुत देर ठहरता है
उसे पता है
अब मुझे काफी देर
यहीं वक़्त गुज़ारना है
क्योंकि वह शाम की
ढलती धूप जो होती है
उम्र के उस पड़ाव की तरह
और मन डर कर
ठहर जाता है
ठंडी धूप की तरह
जब अपने स्वयं के लिए
वक़्त ही वक़्त है
अब घोंसले में अकेले
पक्षी की तरह
अब सब उड़ना सीख गए
आँखों में जो अकेलापन बस गया है
उसे कहीं तोह छिपाना है
कहाँ - कहाँ
चश्मे के पीछे
अखबार के पन्नों में
पार्क की किसी खाली बेंच
या
छत का कोना
क्योंकि वो ढलती धूप
मेरे बहाने जानती है
इसलिए रुकी रहती है
काफी वक़्त तक
मेरे लिए
क्योंकि अब
मुझे काफी देर
यहीं वक़्त गुज़ारना है |
वाह ! क्या बात है ! बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया राजेश जी ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-07-2017) को "शंखनाद करो कृष्ण" (चर्चा अंक 2675) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत बहुत शुक्रिया शास्त्री सर जी ।
Deleteबहुत खूबसूरत कविता मधुलिका जी ... अकेलेपन को चीरती...
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Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteकम से कम धुप ही साथ निबाह देती है ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया संगीता जी ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " स्व॰ कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल जी की ५ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया मेरी रचना को स्थान देने पर ।
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत बहुत अभार आपका ।
Deleteकोमल मनोभाव की सुंदर अभिवयक्ति..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteदिल को छूती सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteबहुत ख़ूब ... धूप प्रतीक है चाहत की और देर तक वी तभी ठहरती है ... इंतज़ार को चेतन रखती ...
ReplyDeleteनाज़ुक एहसास की अभिव्यक्ति है ...
दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 26 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteतहेदिल से अभार आपका मेरी रचना को स्थान देने पर ।
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ReplyDeleteसुन्दर प्रतीकों ,बिम्बों से सजी रचना। सन्देश की व्यापकता और रचना मर्म बार-बार वाचन के लिए आकर्षित करता है। बधाई।
तहेदिल से अभार आप का मेरी रचना को पसंद करने पर ।
Deleteएकाकी होती जीवन की साँझ का सहारा है सूरज
ReplyDeleteकोई तो है साथ ....इसी से मन को संतुष्ट करना पड़ता है
बहुत सुन्दर मनोद्गार ,,,
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Deleteतहे दिल से शुक्रिया कविता जी ।
Deleteसुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteवाह !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteखूबसूरत, शांत, सहज भावों से सजी रचना !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका ।
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