कई दिनों से खामखा की ज़िद
वह श्रृंगार अधूरा सा क्यों है
अब क्या और किस बात की जिरह
मेरे पास नहीं है वो ज़ेवर
जो तुम्हे वर्षों पहले चाहिए थे
वह सब मैंने ज़मीं में दफ़न कर दिया है
हालात बदल गए हैं
तुम उस ख़ज़ाने को ढूंढना चाहते हो
और चाहते हो की उस
एक एक आभूषण को
मैं धारण कर लूँ
वो ख़ज़ाने का सामान
वो कहकहे वो इंतज़ार
वो आँखों की चमक
वो गालों का दहक उठना
वो बातों की खनक
सब तुम्हारी आखरी मुलाक़ात के बाद
वहीं दफ़न कर दिया था
क्योंकि मुझे उन गहनों की
आदत नहीं रही
वो श्रृंगार अब नहीं कर सकती
क्यों बेकार में खामखा की ज़िद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-08-2017) को "लड़ाई अभिमान की" (चर्चा अंक 2687) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तहे दिल से शुक्रिया सर मेरी रचना को चर्चा अंक मे स्थान देने पर।
Deleteगुज़रे हुए वक़्त की चाह है किसी को होती है ... कई बार उम्र का एहसास उस वक़्त को आने नहीं देता पर दिल में अगर वो एहसास रहे तो उम्र भी पीछे रह जाती है ... कई बार मन एकाकी हो जाता है पास एहसास जरूरी ही ....
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया सर मेरी ब्लॉग पर आने का ।
Deleteकिसी तरह चैन नहीं बस अपनी बात मनवाने की ज़िद होती है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार संगीता जी।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सर।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया पम्मी जी ।
Deleteबहुत ही सुंदर....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteअंतस की वेदना की अप्रितम अभिव्यक्ति --------
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का ।
Deleteसटीक व सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का ।
Deleteमन में उमंग नहीं तो कोई भी आभूषण फीका होता है
ReplyDeleteबहुत अच्छे मनोभाव
तहे दिल से शुकि्या कविता जी ।
ReplyDelete