Friday, 9 June 2017

ये खामोशियाँ


ये खामोशियाँ और 
इनके अन्दर छिपी हुई 
सिसकियाँ , हिचकियाँ 
बहुत धीमे धीमे घुटती आवाज़ 
कानों में उड़ेल जाती हैं 
ढेर सारा गर्म लावा 
वो स्लो पॉयजन 
फैलता जाता है 
दिमाग की नसों में 
और वहाँ जा कर 
कोलाहल बन जाता है 
मैं भागती रहती हूँ 
शान्ति की तलाश में 
कभी कभी छुपने की 
जगह तलाशती हूँ
जहाँ कभी तुम होते थे 
तुम्हारे पीछे छुपने पर 
वो मसाले वाले हाथ 
तुम्हारी उजली शर्ट का 
मेरे मसाले वाले हाथों से 
ख़राब होने का मलाल 
तुम्हारे चेहरे पर
साफ़ नज़र आता था 
तुम्हारे पीछे छुपने पर भी 
दोनों बच्चे मुझे ढूढ़ कर 
जोर से खिलखिला देते थे 
वो छुपने का खेल कितना
मासूम हुआ करता था 
अब तो अपने आप से
अपने आप को छुपा लूं तो सही 
ये आँखों की नमी 
अब बोलती नहीं 
ये खामोशियाँ और 
इनके अन्दर छुपी हुई 
सिसकियाँ , हिचकियाँ 

17 comments:

  1. सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ओकार जी ।

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  2. बहुत बहुत आभार आपका शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा मंच मे स्थान देने पर ।

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  3. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 14 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. तहेदिल से आभार आपका मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद मे शामिल करने पर ।

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  5. ज़िंदगी के खूबसूरत एहसास हमेशा पीछा करते हैं । तसल्ली भी देते है । खूबसूरत रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मेरी ब्लॉग पर आने का ।

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  6. ज़िंदगी के खूबसूरत एहसास हमेशा पीछा करते हैं । तसल्ली भी देते है । खूबसूरत रचना ।

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    1. तहे दिल आभार आप का राजेश कुमार जी .मेरी ब्लॉग पर आने का ।

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  7. बहुत ही सुन्दर... मार्मिक...
    लाजवाब प्रस्तुति...

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    1. बहुत बहुत आभार आप का मेरी ब्लॉग पर आने का ।

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  8. जब किसी के पीछे छुपने की जगह खो जाती है, तब ही खुद को खुद से छुपाने की जरूरत पड़ती है...
    मर्मस्पर्शी रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आप का मेरी ब्लॉग पर आने का ।

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  9. अतिमार्मिक रचना सुन्दर ! आभार "एकलव्य"

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मेरी ब्लॉग पर आने का

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  10. खामोशी भी कई बार पुराने एहसास लौटा लाती है ... कुछ पल के लिए ही सही ...कई बार टीस ही रह जाती है ...

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  11. आप की सराहना के बाद में अपनी रचना को एक नए मुकाम पर हासिल होते हुए पाती हूँ ।शुक्रिया आप का सर ।

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