Saturday 28 May 2016

माँ की परछाई


माँ तुम्हारी परछाई को
धीरे धीरे अपने में
समाहित होते देख रही हूँ 
बचपन का खेल
तुम्हारी बिंदी और साड़ी से 
अपने को सजाना 
फिर कुछ वर्षों बाद
तुम्हारी जिम्मेदारियों में 
तुम जैसा बन्ने की
कोशिश में तुम्हारा
हाथ बटाना
जब विदा हुई नए परिवेश में
तब हम तुम एक परछाई के 
दो हिस्से हो गए 
अब मैं और भी तुममे 
ढल जाती हूँ 
प्यार ममता सुख दुःख 
सब आँचल में समेटना 
सीख लिया है
वो बचपन में ज़रा सी चोट पर 
आंसू बहाना
पर अब  चूल्हे की लपटों से 
झुलसे हाथों को 
छुपाना सीख गयी हूँ
अब मैंने तुम्हारी परछाई को 
पूरा अपने में डुबो दिया है 
वो बचपन का खेल नहीं था 
वो एक बेटी का माँ के रूप में 
ढलने की शायद शुरुआत होती है । 

29 comments:

  1. गहरे एहसासों की अभिव्यक्ति। बेहद खूबसूरत रचना। अति सुन्दर।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका राजेश जी । आप जैसे बड़े शक्श का मेरी रचनाओं के लिया वक़्त निकलना ।

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  2. गहरे एहसासों की अभिव्यक्ति। बेहद खूबसूरत रचना। अति सुन्दर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका राजेश जी ।-

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  3. ''मां की परछाईं'' मुझे बहुत भाावुक कर गई। बेटियां हमेशा पास नहीं रहतीं। सोचकर ही सिहरन दौड़ जाती है। इससे ज्‍याद मैं और क्‍या कहूं...?

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।बेटियाँ बहुत हिम्मत वाली होती है बस यही एक बात खलती है की बो हमेशा हमारे पास नहीं रहती ।

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  4. सारे संस्कार माँ से मिलते हैं माँ में ही मिल जाते हैं ....
    बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कविता जी ।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-05-2016) को "आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती" (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शास्त्री जी

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  6. सही कहा आपने। बेटी माँ की परछाई ही होती है। बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी ।

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  7. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी।

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  8. हृदय कपाट पर दस्तक देती मार्मिक प्रस्तुति - बधाई

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    1. बहुत बहुत आभार आपका राकेश जी मेरी रचना को सराहने का ।

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  9. एक उम्र के बाद बेटियाँ माँ का प्रतिबिम्ब बन जाती हैं ... और सभी को प्यारी हो जाती हैं ... भावपूर्ण रचना है ...

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  10. बहुत बहुत आभार आपका नेस्वा सर जी मेरी ब्लाग के लिए वक्त देने का और सराहने का ।

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  11. संवेदनशील रचना

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  12. बहुत बहुत आभार आपका

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  13. Wah, chulhe ki lapton se zulsi hatheliyon ko chupana be tiyan seekh hee jatee hain, Maon ki parchaee ban hee jatin hain.

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  14. बहुत बहुत आभार आपका आशा जी मेरी ब्लॉग परआने का । और मेरी रचना को सराहने का |

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  15. कोमल और गहन अहसासों का बहुत प्रभावी चित्रण...बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सर मेरी ब्लाग पर आने का और मेरी रचना को सराहने का ।

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  16. सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत आभार हिमकर जी मेरी ब्लाग पर आने का और मेरी रचना को सराहने का

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    2. बहुत बहुत आभार हिमकर जी मेरी ब्लाग पर आने का और मेरी रचना को सराहने का

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  17. नारीत्व अपने आप मे माँ बेटी और बेटी माँ मे अपने प्रतिबिम्ब को समाहित कर लेते हैं।

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  18. बहुत बहुत आभार आपका ।

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