कल जब परदेस में
तनहा बैठा था मैं
मेरे देश के चाँद ने हौले से कहा
वापस आजा ओ परदेसी
तेरे देश में भी मैं चमक रहा
उन सिक्को की आबोताब में
मत खो जा
तेरे अपने बड़े बेसब्री से
राह तक रहे हैं
जा उनका रुखसार चमका
बेजान कागजों के ढेर
अपने रिश्तों को
पाने में कर देगा देर
माँ का आखिरी सांस तक इंतज़ार
नहीं दोबारा कर पाएगा
पिता से आँखें चार
जिसे छोड़ गया था सावन में
वो मौसम सिमट गया है
उन दो आँखों के आँगन में
बिन बादल बरस जाती है
भिगो जाती है सुर्ख दामन
कोई तेरा अपना
तुझसे सवाल कर रहा
कुछ तो बता जा
कब तू इधर का रुख कर रहा
तेरी पेशवाई के लिए
वो ढेरों ख्वाब बुन रही
फिज़ाओं में घुल जाने दे
तेरी हसी जिसने औरों को खामोश कर रखा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-06-2016) को "वक्त आगे निकल गया" (चर्चा अंक-2372) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत शुक्रिया सर आपका ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया सर आपका ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
ReplyDeleteवाह - बहुत खूब
ReplyDeletehttp://hradaypushp.blogspot.in/2013/03/maa.html
बहुत बहुत शुक्रिया आपका राकेश जी ।
Deleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका प्रतिभा जी ।
Deleteमार्मिक।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आशा जी ।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आशा जी ।
Deleteबहुत संवेदनशील भाव ... परदेस में रहते हुए भी यही एहसास रहता है की काश देश में होते ... पर कई बार अर्थ की मजबूरी कठोर हकीकत के आगे बेबस होता है इंसान ....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नेस्वा सर जी मेरी ब्लाग पर आने का और मेरी रचना को सराहने का ।
ReplyDeleteदिल को छूते बहुत गहन अहसास...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कैलाश शर्मा जी ।मेरी ब्लाग पर आने का ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका कैलाश शर्मा जी ।मेरी ब्लाग पर आने का ।
Deleteविदेशों में काम कर रहे लोोगों को अपने वतन की बहुत याद आती है। जो सुकून अपने देश में मिलता है वह दुनिया और कहीं नहीं मिल सकता। आपकी यह रचना उस दर्द को बखूबी बयां कर रही है।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जमशेद आजमी जी ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका जमशेद आजमी जी ।
Deleteखूबसूरत भावों से सजी सुन्दर कविता। अति सुन्दर।
ReplyDeleteखूबसूरत भावों से सजी सुन्दर कविता। अति सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूब. भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका हिमकर जी ।
Deleteमधुलिका जी, बहुत ही भावपुर्ण अभिव्यक्ति है ये। चंद सिक्कों के लिए लोग विदेश तो जाते है लेकिन उनके अपने यहां पर उनके लिए तरसते रहते है।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी ।
Deleteकुछ लोगों की रोजी रोटी के लिए एक तरह की मज़बूरी रहती है परदेश में रहने की, लेकिन कुछ की इससे अच्छा कुछ ज्यादा पाने की लालसा, अच्छे ठाट बाट से रहने की उत्कंठा, कुछ भी हो लेकिन जो ख़ुशी अपने वतन की खुली हवा में मिलती हैं वह कहीं नहीं मिलती .. यह और बात है की यह बात बहुत देर से समझ आती हैं ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कविता जी ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअपना चाँद, हमें आवाज़ देता है, पुकारता है .............हृदयस्पर्शी कविता ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका महेन्द्र वर्मा जी ।
ReplyDeleteअरे यह क्या दीदी, आपका ब्लाग 11 जून से अपडेट नहीं है। कोई नई पोस्ट नहीं। आपका स्वास्थ्य तो ठीक है।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका जमशेद आज़मी जी । कोशिश करुँगी जल्द ही नई पोस्ट लिखने की ।
Deleteअरे यह क्या दीदी, आपका ब्लाग 11 जून से अपडेट नहीं है। कोई नई पोस्ट नहीं। आपका स्वास्थ्य तो ठीक है।
ReplyDeleteआपने जो अहमियत दी उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
DeleteBahut hi accha vichar sabdo ke madhyam SE.
ReplyDeleteBahut hi accha vichar sabdo ke madhyam SE.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका राजेश मिश्रा जी ।
DeleteHridaysparshi rachana hai Madhulika ji ..Bahut sundar....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका पल्लवीजी
Delete