वो गर्मी की चांदनी रातें
बेवजह की बेमतलब की बातें
कितनी ठंडक थी उन रातों में
अब भी समाई है कहीं यादों में
वो बिछौने और उन पर डले गुलाबी चादर
अपने अपने हिस्से के तारों को
गिनने की आदत
वो सारे दोस्तों का छत पर
हुजूम लगाना
देर तक जाग कर
बातों में मशरूफ हो जाना
वो वक़्त था या
मुट्ठी की रेत
अब दिलों की तपिश में
वो ठंडक घुल गयी है
वो चादरें महताब
अब बंट गया है
अपने अपने हिस्से के तारों में
वो याराना बातें
अब सलीकों में ढल गयी है
अब अरसे से बंद पड़े
छत पर जाने वाले दरवाजे में
दीमक पड़ गयी है औपचारिकता की
अब कभी नज़र उठा के
आसमान की ओर देखती भी हूँ
तो वह मुझे पागल की उपमा देकर
मुस्कुरा देती है
बेहद खूबसूरत रचना। वक्त का गुजरना और मुट्ठी से रेत की फिसलन लगभग एक जैसी है। कितनी तेजी से निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता। भावपूर्ण एवं सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की १५५ वीं जंयती - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने का ।
DeleteBahut sunder
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत सुंदर रचना , शब्द शब्द बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteभले ही परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं लेकिन जब यह हम इंसानों पर लागू होता है, बड़ा अटपटा लगता है। यदि कुछ अच्छा परिवर्तन हो तो वह तो अच्छा लगता है लेकिन अच्छा न हो तो दिल तो दुखता ही है.... ऐसे में बेचारगी हाथ लगती हैं ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteबहुत ही खूबसूरत और शानदार अभिव्यक्ति। गर्मी की वो रातें तो अब यादें बन कर रह गई हैे। कभी छत पर सोना, चांद तारों को निहारना, हमारी सृजनात्मका को भी बढ़ाता था। पर आज छत पर सोना पड़ जाए तो हम उसे मजबूरी का नाम देते हैं। बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत और शानदार अभिव्यक्ति। गर्मी की वो रातें तो अब यादें बन कर रह गई हैे। कभी छत पर सोना, चांद तारों को निहारना, हमारी सृजनात्मका को भी बढ़ाता था। पर आज छत पर सोना पड़ जाए तो हम उसे मजबूरी का नाम देते हैं। बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का ।
Deleteवक़्त बदल देता है बहुत कुछ ... पर प्यार के पल रह जाते हैं दिल में ... यादें तो रहती हैं दिल में ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर
Deleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...समय के साथ कितनी बदल जाती है ज़िंदगी, लेकिन यादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर
Deleteपहले कभी सुना करता था कि कवि या लेखक अपनी रचना को खुद जीता है तभी वह रचना कालजयी होती है । यह कविता भी वैसी ही है,पढ़ो तो ऐसा लगता है खुद की एक कहानी आँखों के सामने से गुजर गई।बेहद खूबसूरत कविता ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय
Deleteपहले कभी सुना करता था कि कवि या लेखक अपनी रचना को खुद जीता है तभी वह रचना कालजयी होती है । यह कविता भी वैसी ही है,पढ़ो तो ऐसा लगता है खुद की एक कहानी आँखों के सामने से गुजर गई।बेहद खूबसूरत कविता ।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार आपका राजेश कुमार जी ।
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