Saturday, 7 May 2016

चांदनी रातें


वो गर्मी की चांदनी रातें 
बेवजह की बेमतलब की बातें
कितनी ठंडक थी उन रातों में
अब भी समाई है कहीं यादों में 
वो बिछौने और उन पर डले गुलाबी चादर 
अपने अपने हिस्से  के तारों को 
गिनने की आदत 
वो सारे दोस्तों का छत पर 
हुजूम लगाना
देर तक जाग कर 
बातों में मशरूफ हो जाना 
वो वक़्त था या
मुट्ठी की रेत
अब दिलों की तपिश में 
वो ठंडक घुल गयी है
वो चादरें महताब 
अब बंट गया है 
अपने अपने हिस्से के तारों में 
वो याराना बातें 
अब सलीकों में ढल गयी है 
अब अरसे से बंद पड़े
छत पर जाने वाले दरवाजे में
दीमक पड़ गयी है औपचारिकता की
अब कभी नज़र उठा के
आसमान की ओर देखती भी हूँ
तो वह मुझे पागल की उपमा देकर 
मुस्कुरा देती है

28 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचना। वक्त का गुजरना और मुट्ठी से रेत की फिसलन लगभग एक जैसी है। कितनी तेजी से निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता। भावपूर्ण एवं सुन्दर प्रस्तुति।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की १५५ वीं जंयती - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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    2. बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने का ।

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  6. बहुत सुंदर रचना , शब्द शब्द बेहतरीन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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    2. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  7. भले ही परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं लेकिन जब यह हम इंसानों पर लागू होता है, बड़ा अटपटा लगता है। यदि कुछ अच्छा परिवर्तन हो तो वह तो अच्छा लगता है लेकिन अच्छा न हो तो दिल तो दुखता ही है.... ऐसे में बेचारगी हाथ लगती हैं ...
    बहुत अच्छी रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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    2. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  8. बहुत ही खूबसूरत और शानदार अभिव्‍यक्ति। गर्मी की वो रातें तो अब यादें बन कर रह गई हैे। कभी छत पर सोना, चांद तारों को निहारना, हमारी सृजनात्‍मका को भी बढ़ाता था। पर आज छत पर सोना पड़ जाए तो हम उसे मजबूरी का नाम देते हैं। बहुत ही सुंदर।

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  9. बहुत ही खूबसूरत और शानदार अभिव्‍यक्ति। गर्मी की वो रातें तो अब यादें बन कर रह गई हैे। कभी छत पर सोना, चांद तारों को निहारना, हमारी सृजनात्‍मका को भी बढ़ाता था। पर आज छत पर सोना पड़ जाए तो हम उसे मजबूरी का नाम देते हैं। बहुत ही सुंदर।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आप का ।

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  10. वक़्त बदल देता है बहुत कुछ ... पर प्यार के पल रह जाते हैं दिल में ... यादें तो रहती हैं दिल में ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर

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  11. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...समय के साथ कितनी बदल जाती है ज़िंदगी, लेकिन यादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर

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  12. पहले कभी सुना करता था कि कवि या लेखक अपनी रचना को खुद जीता है तभी वह रचना कालजयी होती है । यह कविता भी वैसी ही है,पढ़ो तो ऐसा लगता है खुद की एक कहानी आँखों के सामने से गुजर गई।बेहद खूबसूरत कविता ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय

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  13. पहले कभी सुना करता था कि कवि या लेखक अपनी रचना को खुद जीता है तभी वह रचना कालजयी होती है । यह कविता भी वैसी ही है,पढ़ो तो ऐसा लगता है खुद की एक कहानी आँखों के सामने से गुजर गई।बेहद खूबसूरत कविता ।

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    1. तहे दिल से आभार आपका राजेश कुमार जी ।

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