सब भरपेट खाओ बहुत है खाना
फटी हुइ साड़ी को शाल से ढक लिया
मेरी फीस का सारा जिम्मा अपने सिर कर लिया
रात में ठंड से काँपती रहे
और मुझे दो-दो दुशालें से ढांपती रहे
मैं बरस दर बरस बढ़ता गया
मेरी भावनाओं, ख़यालातों का दायरा घटता गया
मैंने तुझसे दूर जा कर
सिक्कों का महल बनाया
वक्त को मोहरा बना कर
तरक्की के सारे दरवाज़ों को खोलता गया
पर तेरी ओर जाने वाले दरवाजे को खोलना ही भूल गया
दूर रहकर भी तू पूछती
तेरी आवाज़ कुछ सर्द है
क्या जीवन में कुछ कमी या कोइ दर्द है
माँ तेरी बीमारी, लाचारी
डाक्टर और दवा का इतंज़ार
धंसती आँखें बंया कर रही थी
जर-जर होते शरीर की कहानी बार-बार
पिता का काँपते हाथों से
पुरानी दराज़ में पैसे टटोलना
अनुभवी आँखों का सही अंदाज़ा
पर कुछ ना बोलना
बेबसी और लड़खड़ाते कदम
आखिरी सांस और
अनंत आशिर्वाद और प्यार का संगम
ईश्वर मेरे बेटे को हमेशा ख़ुश रख़ना
उसके हिस्से के दुख़ दर्द मेरे सिर करना
माँ तुझे मेरे प्यार और सहारे की चाहत
जाने क्यों नहीं दी मैंने उन्हें राहत
अति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका राजेश कुमार जी ।
Deleteअति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका राजेश कुमार जी ।
Deleteहर हाल में अपने बच्चों के बेहतरी के लिए ताउम्र लगी रहना, उनके लिए दुआ करते रहना एक माँ ही कर सकती हैं तभी तो उसे माँ नाम दिया है ....
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना ..
बहुत बहुत शुक्रिया आपका कविता जी ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-01-2016) को "प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आपका शास्त्री सर जी । मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने का ।
Deleteमधुलिका जी, मॉ के उपकार इंसान किसी भी सुरत में चुका नहीं सकता। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी ।
Deleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। बहुत मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कैलाश शर्मा जी ।
Deleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। बहुत मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका कैलाश शर्मा जी ।
Deleteबहुत सुंदर और भावात्मक रचना.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका राजीव कुमार जी ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बीटिंग द रिट्रीट 2016 - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने का शुक्रिया ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"
यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"
बहुत बहुत शुक्रिया आपका.
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"
यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"
बहुत बहुत शुक्रिया आपका प्रदीप कुमार जी. मेरी रचना को ब्लाग दीप में स्थान देने पर.
Deleteमर्मस्पर्शी ....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका अम्रिता जी
Deleteबेहतरीन और भावपूर्ण रचना......बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप का प्रसन्बदन चतुर्बेदी जी ।
Deleteममत्व की कोई उपमा नहीं ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता ।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका महेंद्र वर्मा जी ।
Deleteमाँ से जो न सोच सको वो भी उम्मीद चुटकी में मिल जाती है ... शायद ताभी तो माँ सा कोई नहीं ... दिल को छूते हुए शब्द ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका दिगम्बर सर जी मेरी रचना को पढने और सराहने का ।
DeleteBeautiful expression
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Deleteसुन्दर और भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका हिमकर श्याम जी ।
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