तुम मुझे देखना चाहते हो
मदारी के बंदर की तरह
कितना हसीन ख़्बाव है तुम्हारा,
मेरा तुम पर ऐतमाद
की जहां मुझे लगे की
कदमों तले ज़मीन नहीं है,
वहाँ मुझे तुम्हारे हाथों की
मज़बूती का अहसास हो...
पर तुम्हारे हाथों की मज़बूती में
कठपुतली वाली डोर फँसी हुई है
जिसके धागे मुझ तक आते हैं
और मुझे उलझा जाते हैं
ताकि मैं चलती रहूँ
नागफनी के सुंदर काँटों पर
सबसे अहम मेरे अहंकार की डोर को भी
तुम तोड़ देना चाहते हो ,पर
वो मेरा ग़ुरूर, मेरा फहम
नहीं बन सकते तुम्हारे गुलाम
हालातो के हाथों की
मै कठपुतली ज़रूर हूँ पर
मेरे अंदर का स्वाभिमान जब तक ज़िंदा है
हर उल्झी हुई डोर
मुझे नाचने पर मजबूर
ज़रूर कर सकती है
पर मेरे स्वाभिमान को नहीं ।
~
ऐतमाद ~ विश्वास
फहम ~ दिमाग़
सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteआदरणीय सर तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteआदरणीया मेरी रचना को पाँच लिंको के आनंद में स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका
Deleteसुंदर और सारगर्भित
ReplyDeleteआदरणीया तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
Deleteसंवेदनशील काव्य सृजन
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका
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