मीलों दूर तक पसरे हुए ये रास्ते
कभी कभी बोझिल हो जाते हैं कदम
जाने पहचाने रास्तों को
देर नहीं लगती अजनबी बनने में
जब सफर होता है तन्हा
और मंज़िलें होती गुम
रौशनी में नहाये हुए बाज़ार
रौनकों से सजी हुई दुकाने
पर मैं कुछ अलहदा
ढूंढ़ रही हूँ खरीदने के वास्ते
ढेर सारी खामोशियाँ
सौदागर बोला
इसका व्यापार नहीं होता
पर मिल जाएगी तो
ला दूंगा
तुम सजा लेना
अपने आस - पास
मेरे मन का हकीम
कभी कभी दिलासा देने
आ जाता है
खंडहरों के रास्ते से
की कभी न कभी ढूँढ लाऊंगा
गहरे ज़ख्मों की दवा
क्योंकि अभी तुम युद्ध के मैदान में हो
और जंग जीतने तक
लड़ना है तुम्हे
मंझे हुए घुड़सवार यूं ही नहीं
गिरा करते
जीवन के युद्ध में
पीठ दिखा कर
हिम्मत हारा नहीं करते
एक अहसास जो मन के द्वन्द को जतलाता है ...
ReplyDeleteतलाश ख़ामोशी की पर जंग लड़ने की जद्दोजहद ... शायद यही जीवन है ...
भावपूर्ण रचना ...
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत बहुत शुक्रिया राधा जी मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १८ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १८ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया 'शशि' पुरवार जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
बहुत बहुत शुक्रिया ध्रुव् सर मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप को फदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएं |
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, फदर्स डे और हमारे बुजुर्ग - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आप को भी फादर्स डे पर बहुत सारी शुभकामनायें।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया शिवम सर मेरी रचना को ब्लाग बुलेटिन में स्थान देने पर।
Deleteऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया संजयजी।
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