एक उम्र जो गुम हो गई
आज बहुत ढूंढा मैंने
अपनी उम्र को
पता नहीं कहाँ चली गई
नहीं मिली
रेत की तरह
मुट्ठी से फिसल गई
या रेशा रेशा हो कर
हवा में उड़ गई
बारिश की बूँद की तरह
मिट्टी में गुम हो गई
सूरज की किरणों के साथ
पहाड़ों के पीछे छिप गई
वो मुझे जैसे छू कर
कहीं ठहरी ही नहीं
गुज़रती ही गई
हम उम्र के अंदर
कहीं ठहर जाते हैं
पर उम्र हममें कहीं नहीं ठहरती
ढलान से लुड़कता हुआ
मिट्टी का मर्तबान है
ये ज़िन्दगी
आखिर में जीवन
टूट कर बिखर जाता है
पंचतत्त्व में
विलीन होने के लिए
कितनी अच्छी और सच्ची बातें कितनी सहजता से कह जाती हैं आप सुन्दर लेखन यूँ ही सदा सदा चलता रहे !!
ReplyDeleteमेरी रचना को सराहने पर तहेदिल से शुक्रिया संजयजी।
ReplyDeleteसमय किस के रोके रुका है ...
ReplyDeleteधीरे धीरे हाथ से निकल जाता है वक़्त और उसके साथ उम्र ... पाँच तत्व रो मिला लेते हैं अपने में ...
गहरी रचना ...
बहुत बहुत शुक्रिया सर जी मेरी रचना को सार्थक करने के लिए।
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ११ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' ११ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया शुभा मेहता जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
तहेदिल से शुक्रिया ध्रुब सर मेरी रचना को स्थान देने पर |
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मेरी रचना को "पांच लिंको का आनंद में" स्थान देने के लिये तहे दिल से शुक्रिय!
Deleteढलान से लुड़कता हुआ
ReplyDeleteमिट्टी का मर्तबान है
ये ज़िन्दगी........जीवन दर्शन की अद्भुत अभिव्यक्ति!!!
तहेदिल से शुक्रिया आप का।
Deleteजीवन के सत्य को बडी सहजता से स्याही मे भरकर शब्द उकेर दिया आपने, सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आप का।
Deleteवाह!!सुंदर रचना ।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आप का
Deleteवाह लाजवाब!!
ReplyDeleteसमय ही सिर्फ नही फिसलता उम्र भी समय के प्रति रुप हर रोज फिसलती चली जाती है। सुंदर रचना।
तहेदिल से शुक्रिया आप का
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आप का।
Deleteउम्र ठहरती नहीं....
ReplyDeleteसही कहा समय के साथ साथ उम्र भी निकलती जाती है हाथ से......
मिट्टी का मर्तबान है
ये ज़िन्दगी
आखिर में जीवन
टूट कर बिखर जाता है
पंचतत्त्व में
विलीन होने के लिए
वाह!!!
गहन चिन्तनीय...
तहेदिल से शुक्रिया आप का
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आप का।
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