चाँदनी रात के साये में
जागते और भागते लोग
आँखों में नींद कहाँ है
सपने आँखों से भी बड़े हैं
न नींद में समाते
न आँखों को आराम पहुँचाते
आज की रात खत्म होती नहीं
उससे पहले कल का दामन
थामने की जल्दी
ज़िन्दगी ने तो जैसे
जद्दो - जहद की हद कर दी
कासिब का हिसाब
कदो हैसियत से छोटा होता जा रहा है
ये चाँद और सूरज
शहर को जगाते और
भगाते हैं
उम्र से लम्बी सड़कों पर
भागने वाला मन
आँखों के सपने
एक दिन खुली हथेली से
फिसल कर
दूर कहीं टूट कर
बिखर जाते हैं
लम्हा लम्हा पकड़ने की चाह में
ज़िन्दगी पता नहीं कब
राख होकर उड़ जाती है