चाँदनी रात के साये में
जागते और भागते लोग
आँखों में नींद कहाँ है
सपने आँखों से भी बड़े हैं
न नींद में समाते
न आँखों को आराम पहुँचाते
आज की रात खत्म होती नहीं
उससे पहले कल का दामन
थामने की जल्दी
ज़िन्दगी ने तो जैसे
जद्दो - जहद की हद कर दी
कासिब का हिसाब
कदो हैसियत से छोटा होता जा रहा है
ये चाँद और सूरज
शहर को जगाते और
भगाते हैं
उम्र से लम्बी सड़कों पर
भागने वाला मन
आँखों के सपने
एक दिन खुली हथेली से
फिसल कर
दूर कहीं टूट कर
बिखर जाते हैं
लम्हा लम्हा पकड़ने की चाह में
ज़िन्दगी पता नहीं कब
राख होकर उड़ जाती है
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अनुराधा जी
Deleteआपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (20-08-2018) को "आपस में मतभेद" (चर्चा अंक-3069) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तहेदिल से शुक्रिया आप का मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए।
Deleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 21/08/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
तहेदिल से शुक्रिया आप का मेरी पोस्ट को पांच लिंको का आनंद में स्थान देने के लिए।
Deleteसच भागती जिंदगी में कितना कुछ पीछे छूट जाता है, बहुत बाद में पता चलता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत शुक्रिया कविता जी।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सुमन जी
Deleteये ठीक कहा है आपने पर शायद जिंदगी भी तो यही है ...
ReplyDeleteसभी यह कर रहे हैं ...
मन के अवसाद भरे पल को बाखूबी लिखा है अपने ...
जी सर ठीक कहा आपने हम सब इसी भागदौड़ का हिस्सा है। तहेदिल से शुक्रिया आप का।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आप का ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
ReplyDeleteवर्त्तमान परिस्थिति को दर्शाती
ReplyDeleteअति उत्तम रचना
बहुत खूब...
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
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