Thursday 28 September 2023

थकते पंख अब सिमट से गए हैं


स्त्री और समेटना दोनों शब्द एक दूसरे के पूरक हैं 

बचपन से ही माँ सिखाती है 

अपना कमरा समेट कर रखो 

कपड़े किताबें बिखरा हुआ सामान 

हम माँ के रूप में इस शब्द को 

समझते और अपने आप में 

ढालते चले जाते हैं 

माँ कितना कुछ समेटती है 

अपनी ज़िंदगी को 

कठिनाइयों के दर्द को बिखरे हुए रिश्तों को 

अपने पल्लू को 

जिसमें काम की यादों की गांठे लगी हुई हैं 

अपने सुनहरे बालों को 

जो उसके सुंदर से चेहरे पर 

अटखेलियों करते हैं 

हम स्त्रियाँ सारी ज़िंदगी 

घर को समेट कर उसे 

जीवन देते हैं 

अपनी सांसो से सींचते है 

हर समेटी हुई चीजों के बीच में 

अपनी महत्वकांक्षाओं को भी 

बड़ी उम्मीद से 

समेट देते हैं 

की पता है कभी पूरी नहीं होने वाली 

जब अपनी इच्छाओं के पंखों को 

समेट लेते हैं तोसभी के उन्नति के 

द्वार खुल जाते हैं 

इक उम्र के बाद 

उड़ान भरे हुए पंख 

और थके हुए पंखों 

के बीच की कहानी कोई समझ पाए 

आराम की तलाश में 

सुकून भरे घोंसले की आस में 

स्त्री और पंख 

24 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय

      Delete
  2. सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ।

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर

    ReplyDelete
  4. बहुत खूबसूरत सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया

      Delete
  5. सुंदर सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय

      Delete
  6. उड़ान भरते पंख और थके से पंख...
    उड़ान भरते पंख कहाँ समझ पाते हैं थके पंखों की कहानी....
    सच कहा समेटती ही तो हैं स्त्रियाँ जीवन भर न जाने क्या क्या।
    बहुत ही लाजवाब सृजन
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया आप का आदरणीया

      Delete
  7. जो बात दिल से निकले और दिल से कही जाए, वो दिल को कैसे न छुए ?

    ReplyDelete
  8. तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय सर,

    ReplyDelete
  9. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन

    ReplyDelete
  10. तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय

    ReplyDelete
  11. गहरी पंक्तियाँ ... सती के मन को बाखूबी शब्दों में उतारती हैं आप ...

    ReplyDelete
  12. तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय

    ReplyDelete
  13. समेटने की कला ही भीतर से डिगने नहीं देती, जो बातों को एक पल में समेट सके वह बिखरता नहीं

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया

      Delete
  14. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  15. तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया

    ReplyDelete
  16. तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया

    ReplyDelete
  17. तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया

    ReplyDelete
  18. सर्वप्रथम धन्यवाद् !
    मेरे पोस्ट पर पधारने के लिए -

    हाँ ! औरत हूँ मैं –
    दर्द की हर परिभाषा को समझती हूँ
    तभी तो बेटी से माँ बनने तक
    हर रिश्तें को बड़े जतन से सहेजती हूँ।

    बहुत सुन्दर !
    "समेटना " बहुत छोटे से शब्द में ... एक स्त्री जीवन को प्रस्तुत कर दिया / / भावपूर्ण !

    ReplyDelete
    Replies
    1. तह से शुक्रिया आपका आदरणीय सर

      Delete