Sunday 28 January 2018

अजनबी अजनबी


यह जीवन जब 
भीड़ में गुम हो जाने के बाद 
धीरे - धीरे तन्हा होता है 
धीरे - धीरे पंखुड़ियों से 
सूख कर बिखर जाते हैं यह रिश्ते 
प्यार स्नेह और अपनेपन की 
टूट जाती है माला 
धीरे - धीरे हर मन का 
गिरता जाता है 
धीरे - धीरे कम हो जाता है 
अपनों की आवाज़ों का कोलाहल 
अल्फ़ाज़ बहुत हैं दिल में पर 
धीरे - धीरे शब्दों का 
अजनबी हो जाना
धीरे - धीरे ख़त्म होती 
अहसासों की धड़कन 
धीरे - धीरे कमज़ोर होते धागे 
अपने से अपनों तक के 
जिनमें  पड़  जाती है 
कई गाठें 
पहले इंसान 
अजनबी सी भीड़ में 
शामिल होता है 
भीड़ में खोकर अपना सब कुछ 
वापस भीड़ से अलग 
अजनबी बन जाता है 
हर एक शख़्स एक दुसरे से है 
अजनबी अजनबी . . . 

33 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गणतंत्र दिवस समारोह का समापन - 'बीटिंग द रिट्रीट'“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत शुक्रिया इस कविता को पोस्ट में शामिल करने के लिए | आभार |

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  2. मधूलिका जी अपनी इस छोटी सी कविता में भीड़ वाले सन्नाटे की बात करती हैं. कवि नीरज भी फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' वाले गीत -'बादल, बिजली, चन्दन, पानी जैसा अपना प्यार'में खुद को 'भीड़ के बीच अकेला' पाते हैं. कविता अच्छी है किन्तु इसमें जो विचार है, वह मौलिक नहीं है.

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    1. इस छोटी सी कविता को पढ़ने के लिए शुक्रिया | आश्चर्यजनक बात है की 'खुद को भीड़ में अकेला पाना' एक अमौलिक विचार है ? आज कल की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में हर दूसरा इंसान ज़िन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर खुद को अकेला ही पाता है | उसी की चर्चा इन पंक्तियों में है |

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-01-2018) को "रचना ऐसा गीत" (चर्चा अंक-2865) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत शुक्रिया इस कविता को पोस्ट में शामिल करने के लिए | आभार |

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  4. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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    1. तहेदिल से शुकि्या सर मेरी रचना को स्थान देने पर।

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  5. बहुत खूब
    उम्दा रचना

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    1. बहुत बहुत शुकि्या लोकेश जी ।

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  6. वाह
    बहुत सुन्दर सृजन
    सादर

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    1. तहेदिल से आभार आपका मेरी ब्लॉग पर आने का और मेरी रचना को सरहने का।

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  7. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 7फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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    1. बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी मेरी रचना को स्थान देने पर ।

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  8. वाह !!!बहुत खूब

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    1. बहुत बहुत शुकि्या नीतू जी

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  9. सत्य आज का मनुष्य भीड़ में भी अकेला है

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  10. पहले इंसान
    अजनबी सी भीड़ में
    शामिल होता है
    भीड़ में खोकर अपना सब कुछ
    वापस भीड़ से अलग
    अजनबी बन जाता है
    हर एक शख़्स एक दुसरे से है
    अजनबी अजनबी . . .
    बहुत ही सुंदर प्रसूति, मधुलिका जी।

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    1. बहुत बहुत शुकि्या ज्योति जी

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  11. बहुत सुन्दर ,सार्थक रचना...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  12. वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीय ।

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    1. तहेदिल से शुकि्या सर मेरी ब्लॉग पर आने का ।

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  13. बहुत बहुत शुकि्या ।

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  14. बहुत बहुत शुकि्या सर ।

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  15. मन की इस अवस्था से बाहर ख़ुद आता बाई इंसान ...
    ऐसे अवसाद के पल अनेकों पार जीवन में आते हैं ... कुछ ऐसे पलों की गहरी दास्ताँ है ये रचना ...

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    1. तहे दिल से शुकि्या नेस्वा जी ।

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  16. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया ध्रुव सिंह जी

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  17. This comment has been removed by the author.

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  18. भीड़ में खोकर अपना सब कुछ
    वापस भीड़ से अलग
    अजनबी बन जाता है
    हर एक शख़्स एक दुसरे से है
    अजनबी अजनबी . . .
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति मधुलिका जी।

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  19. बहुत बहुत शुक्रिया संजयजी

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