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Friday, 21 July 2017

ज़िन्दगी धूप की तरह ढलती


वह छत के कोने में 
धूप का टुकड़ा 
बहुत देर ठहरता है 
उसे पता है
अब मुझे काफी देर 
यहीं वक़्त गुज़ारना है 
क्योंकि वह शाम की 
ढलती धूप जो होती है 
उम्र के उस पड़ाव की तरह 
और मन डर कर 
ठहर जाता है 
ठंडी धूप की तरह
जब अपने स्वयं के लिए 
वक़्त ही वक़्त है
अब घोंसले में अकेले 
पक्षी की तरह 
अब सब उड़ना सीख गए
आँखों में जो अकेलापन बस गया है 
उसे कहीं तोह छिपाना है 
कहाँ - कहाँ 
चश्मे के पीछे 
अखबार के पन्नों में 
पार्क की किसी खाली बेंच 
या 
छत का कोना 
क्योंकि वो ढलती धूप 
मेरे बहाने जानती है 
इसलिए रुकी रहती है 
काफी वक़्त तक 
मेरे लिए 
क्योंकि अब 
मुझे काफी देर 
यहीं वक़्त गुज़ारना है |