पिछली बारिश के जमा पलों की गुल्लक खोलें
उसमें थे बंद कुछ पल रजनीगंधा से महके हुए
कुछ पल सिलाइयों से उधड़े हुए
कुछ पल जो हमने वक़्त से थे चुराए भीगे से
पहली बारिश की नम मिट्टी से सौंधे अल्फ़ाज़
आँगन के गड्ढों में जमा हुआ पानी
काग़ज़ की नाव बनाकर
ख़ुशियों से मुस्कुराते चेहरे
सीली हुईं लकड़ी से उठता हुआ धुआँ
चाय में घुला हुआ
धुएँ के इस पार वजूद है
उस पार बस एक ख़लिश है
पहली बारिश में
ज़िंदगी ढूंढता हर शख़्स
आओ पहली बारिश में ज़िंदगी ढूंढें ...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय तहेदिल से शुक्रिया आपका
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteसुंदर सृजन, बारिश दिल के द्वार खोल देती है
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteपहली बारिश के हसीं लम्हों से बुनी शानदार भावपूर्ण रचना . ...
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
Deleteभीग जाना है इस बारिश में :)
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteवाह! गज़ब! सुंदर एहसास की अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
Deleteधुएँ के इस पार वजूद है, उस पार बस एक ख़लिश है। आपकी अभिव्यक्ति सीधे मन की तलहटी से उभरी प्रतीत होती है। बिना किसी बनावट के अपने जज़्बात शायद ऐसे ही कहे जाते हैं।
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय
ReplyDeleteपिछली बारिश के जमा पलों की गुल्लक खोलें
ReplyDeleteउसमें थे बंद कुछ पल रजनीगंधा से महके हुए
कुछ पल सिलाइयों से उधड़े हुए
मुग्ध करती सरस कृति
तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय सर
Deleteअतिसुंदर सृजन मधुलिका जी ✍️
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय सर
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीय सर
Deleteबेहद सुंदर सृजन
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया
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