Wednesday, 3 April 2019

तुम्हारा उपहार



कभी फादर्स डे कभी मदर्स डे
हर साल आते हैं 
सब कुछ मिलता है 
बाज़ारों में उपहारों के लिए 
पर नहीं मिलता तो वो वादों के शब्द
जो चाहिए होते हैं हर माता - पिता को 
क्योंकि वो दुकानों में नहीं दिलों में बिकते हैं 
और एक आश्वासन और विश्वास की
नज़रों के नर्म गिफ्ट पेपर से लिपटे हों अहसास
की हाँ हम होंगे
जब आपको ज़रूरत होगी 

तुम होना तब
जब हम बच्चे बन जाएँ
और तुम हमारे अभिभावक 
वही ममता वही धैर्य
वही प्यार वही अहसास
लौटाने की बारी हो
अर्थ परिस्तिथियाँ 
समय सब बदलती हैं 
न बदलना तुम 
जब तुम्हारी बारी आए
अभिभावक बनने की 
जब हम बच्चे बन
मांगे मन चाहा खाना 
और कांपते हाथों से 
गिरा लें अपने ऊपर 
और टूट जाए महंगी प्लेट 
क्या तुम हमे दोबारा खिलाने तक 
धैर्य को मुट्ठी में बांधे रखोगे 
जब अल्ज़ाइमर से घिर जाएँ 
भूल कर बार बार एक ही बात दोहराएँ  
तुम्हारे पास हमे बहलाने के लिए 
चंद लम्हे तो होंगे न
वो उम्र दराज़ होती नींद 
आँखों से गायब होती जाती
क्या तुम हमारे साथ जागोगे
अब वक़्त बदला जो है
अब हालातों की परीक्षा हमारी है 
परिणाम की चिंता तुम्हे 
तुम्हारे हर इम्तेहान में जाग कर 
सफलता की सीढ़ियों तक छोड़ आए हैं 
हमारे कदम लड़खड़ाएंगे और 
काया होगी कमज़ोर 
क्या तुम सहारा दोगे 
रुक रुक कर चल सकोगे
जैसे हम तुम्हे हाथ पकड़ कर 
चलना सिखाया करते थे 
हमारी आँखों की होगी जब 
रौशनी कम
क्या तुम हमें पढ़कर 
सुनाया करोगे
नहीं हम तुम्हारी तरह 
परियों वाली कहानी 
सुनने की ज़िद नहीं करेंगे 
बस डॉक्टर की दवा 
कितनी दफे खानी है 
इतना ही पढ़ देना 
तुम्हे हैरान नहीं करना है 
बस हर मदर्स डे और फादर्स डे पर 
एक वादा दे दिया करो 
बस इतना सा उपहार काफी है 
हमारा हाथ पकड़ कर विशवास से 
तुम्हारा हाँ कहना ही 
सब उपहार पर भारी है . . . 

17 comments:

  1. बहुत सुंदर सोचने पर मजबूर करने वाली कविता

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया आप का।

      Delete
  2. मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया आप का संजय जी।

      Delete
  3. तहेदिल से शुक्रिया आप का शास्त्री सर जी मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए।

    ReplyDelete
  4. मर्मस्पर्शी कविता..
    विचारणीय शब्दावली से सजी पंक्तियाँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया आप का पम्मी जी

      Delete
  5. एक माता पिता की इच्छाओं का अंत नहीं होता पर एक वादा भी जीने का संबल बन जाता है ... ऐसी किसी इच्छा को रखना आज के समय में बेमानी है पर मन मानता भी नहीं है .... दिल को छूती हुयी संवेदनशील रचना है ...

    ReplyDelete
  6. तहेदिल से शुक्रिया आप का नासवा जी। सच कहा आपने आज की इस भाग दौड़ बाली जिंदगी में ये सब वेमानी है पर उम्र के एक पडाव में इस वादे की बहुत जरूरत होती है

    ReplyDelete
  7. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

    ReplyDelete
  8. तहेदिल से शुक्रिया आप का ।

    ReplyDelete
  9. मार्मिक प्रस्तुतु, बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  10. मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया ।

      Delete