Saturday, 13 July 2024

शब्द

तुम भी वहाँ मौजूद नहीं थे 

मेरा तो खैर सवाल ही नहीं उठता 

पर हमारे ख्याल वहाँ मौजूद थे 

पर हमने कभी ज़िरह की 

ये सवाल ही नहीं उठता

हमारे मौन को शब्द मिले थे

पर शब्द तुम्हारी आवाज़ से गूंजे

सवाल ही नहीं उठता

मेरे तो मौन रहने के फैसले थे 

हर एक ने नई कहानी बनाने के 

जिम्मे बहुत लिए थे 

हमें कहानी का किरदार 

बनाने का सवाल ही नहीं उठता 

मौन में उपजे लम्हे 

बेड़ियों से आज़माइश में डालते थे 

बहुत वक़्त था पर सब 

उड़ता जा रहा था तूफ़ान सा 

धीरे धीरे मौन भी खत्म हो गया 

आँधियों को ज़िन्दगी के फैसले 

उड़ा ले जाने की चाहत बहुत थी 

उजड़ा उजड़ा सा सब बिखरा हुआ 

मेरे चीखने से शब्द भी बने 

आवाज़ भी हुई 

दीवारों से टकराई फिर मुड़कर 

मुझ तक वापस आई 

नई नई दीवारें बनती थी हर लम्हा 

मेरी नज़रों के सामने 

सोने चाँदी हीरे मोती की 

पर मजबूत पत्थर सी 

शब्द भूल गई अर्थ भूल गई 

बस धुंधला सा अक्स है 

और दो आंसू हैं 

जिस दिन आँखों को 

दिखना बंद हो जाएगा 

वो मोती गालों पर लुड़क कर 

मौन को शब्द देंगे 

और स्टेज से 

ज़िन्दगी के नाटक का अंतिम दृश्य होगा  

21 comments:

  1. बहुत सुंदर

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    1. आदरणीय सर बहुत बहुत आभार आपका

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  2. बहुत खूब..👌

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    1. आदरणीया बहुत बहुत आभार आपका

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  3. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. This comment has been removed by a blog administrator.

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    2. आदरणीय सर बहुत बहुत आभार आपका

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  4. बहुत सुंदर सृजन।

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  5. This comment has been removed by the author.

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    1. आदरणीया बहुत बहुत आभार आपका

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  6. बहुत सुंदर सृजन

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    1. आदरणीया बहुत बहुत आभार आपका

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  7. मौन जब मुखरित होता है तो बड़ा कष्ट देता है। .

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    1. आदरणीया बहुत बहुत आभार आपका

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  8. दर्द को भीतर तक महसूस कर ही ऐसी रचना का जन्म होता है

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    1. आदरणीया बहुत बहुत आभार आपका

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  9. इस ख़ामोश दर्द की बात ने मेरे अल्फ़ाज़ को ज़ुबां पर आने से रोककर मुझे भी मौन कर दिया है। क्या कहना, क्या सुनना ? अहसास होना ही काफ़ी है।

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    1. आदरणीय सर बहुत बहुत आभार आपका

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    1. आदरणीय सर बहुत बहुत आभार आपका

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  11. बहुत अच्छी कविता. सादर अभिवादन. नमस्ते

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