Wednesday 30 September 2015

परिंदे


परिंदे नहीं होते स्वार्थी
ख़ुल कर जीते हैं
आख़िरि सांस तक 
निस्वार्थ भाव से सिख़ाते हैं
अपने बच्चो को उड़ना
ख़ुल जाते हैं जब बच्चो के पंख़ 
नहीं उम्मीद करते की
ये मुड़कर लौटेगा भी की नहीं 
आने वाला कल 
घोंसला ख़ाली होगा की भरा 
कैसे रह पाते होंगें 
उनके अपने जब दूर चले जाते होंगें
उनके आँसू उनका दिल उनका इतंज़ार
क्या वो घोंसले से निकाल फ़ेकते हैं
और उड़ जाते हैं सब कुछ झटक कर
कहीं बहुत दूर बिना यादों के

Thursday 24 September 2015

जीवन का मतलब


धीरे -धीरे जिंदगी से शिकायतों की गठरी भर ली 
उस गठरी से बहुत कुछ अच्छा
पीछे छूटकार बिख़रता गया
जिसे न बटोर पाए न वक्त से देख़ा गया 
अब जिंदगी बेतरतीबि से रख़े सामान की तरह हो गई है
मन करता है की काश?
जिंदगी रेशम पर पड़ी सिल्वटों सी होती 
मुट्ठी भर पानी के छीटें मारते 
प्रेस करते और नए सिरे से जीते 
या जिंदगी की इबारत 
कच्ची स्याही से लिखी होती 
अगर बारिश में भीग चुकी होती 
नए सफ़े से फ़िर शुरू होती
पर नहीं कुछ बदल पाते 
उन्ही सिलवटों में बाहर निकलने
का रास्ता ढूंढ़ते 
पक्की स्याही का रंग नहीं धुलता 
इसलिए जीवन में रंग सजाने की
कोशिश जारी रख़ते 
फ़िर से जीने की तमन्ना में
तमाम रातें मौत को गले मिलने का न्यौता देकर
धोख़े से रास्ता बदल लेते हैं
क्या करे सिलवटों और फ़ैली स्याही में 
जीने की आदत जो बरसों से पड़ी है
क्या इंसान वाकई जीवन का मतलब
सारी ज़िंदगी समझ नहीं पाते 

Thursday 10 September 2015

यादों का बहाना



तेरी यादों को मैं झूठे बहाने बना कर 
कहीं छोड़ आइ थी 
पर वो दबे पाँव वापस लौट आइं थी 
उसने मुझे बहाना ये बताया
की मेरे ज़हन से अच्छा आशियाना न पाया
कलाइ पर जो लिखा था तेरा नाम
उस पर जब पड़ती है किसी की प्रश्न भरीं नज़र 
लोगो को बातें बनाने के लिए मिलती होगी नई ख़बर 
पत्थर से घिसने पर भी नहीं छूटता वो लहू में मिला रंग 
तू ने पल-पल मरने की सजा दे दी 
उस पर किसी फ़कीर ने मुझे 
लम्बी हो जिंदगी ये दुआ दे दी 
सब कुछ छोड़ कर तूने लम्बे सफ़र की तैयारी कर ली 
और मुझे आँसुओं को न आने की ताकीद कर दी 
अब तो हर लम्हा तेरी याद साथ है 
शायद वो हाथ की लकीर बन गई है 
ज़िंदगी जो क़बूल नही हुइ
वो दुआ बना गई है